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शब्दार्थ १० अ. अबधा अ० अबाधा से उ• कम क० कर्म स्थिति क० कर्भ निषेक अं० अंतराय का ज जैसे ना० १to
ज्ञानाबरणीय ॥ ६ ॥ ना. ज्ञानावरणीय भं० भगवन् क०कर्म कि० क्या इ०स्त्री बांधती है पु० पुरुष बं०14 बांधता है न० नपुंसक ५० बांधता है नो नहीं स्त्री नो० नहीं पुरुष नो० नहीं नपुंसक बं० बांधता है |
• बांधती है पु० पुरुष भी बं० बांधता है, न नपंसक भी बं० बांधता है नो०१२ स्वी नो० नहीं पुरुष नो० नहीं नपंसक बं० बांधता है एक ऐसे आ० आयष्य व. छोडकर स० सात राइयं जहा नाणावरणिज ॥ ६ ॥ नाणावरणिजं गं भंते ! कम्मं किं इत्थी बंधइ, पुरिसो बंधइ, नपुंसओ बंधइ, नो इत्थी नो पुरिसो नो नपुंसओ बंधइ ? गोयमा ! इत्थीवि बंधइ, पुरिसोवि बंधइ, नपुंसओवि बंधइ, नो इत्थी नो पुरिसो नो नपुंसओ सिय बंधइ सिय नो बंधइ ॥ एवं आउगवज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ॥ आउगं भंते !
कम्मं किं इत्थी वंधइ, पुरिसो बंधइ, पुच्छा ? गोयमा ! इत्थी सिय बंधइ, सिय } भावार्थ, उत्कृष्ट तीस क्रोडाक्रोड सागरोपम की. अबाधा काल तीन हजार वर्ष का ॥६॥ अहो भगवन् !
ज्ञानावरणीय कर्म क्या स्त्री बांधती है, पुरुष बांधता है, नपुंसक बांधता है या इन तीनों वेद रहित । 23 अवेदी बांधता है ? अहो गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध स्त्री पुरुष व नपुंसक तीनों ही करते हैं. नववे ।
दश गुणस्थान में रहनेवाले अवेदी ज्ञानावरणीय का बंध करते हैं अग्यारहवे, बारहवे तेरहवे व चौदहवे।
48- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती)
शतक का तीसरा उद्देशा