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शब्दार्थ
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अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिनी
ज० जघन्य दो० दोसमय उ० उत्कृष्ट ज० जैसे ना० ज्ञानावरणीय मो० मोहनीय ज० जघन्य अं• अंत * मुहूर्त उ० उत्कृष्ट स. सीत्तर सा० सागरोपम को० क्रोडा क्रोड स० सात वा० वर्ष स० सहस्र जा. यावत् आ• आयुष्य ज जघन्य अं० अंतर्मुहूर्त उ० उत्कृष्ट ते० तेत्तीस सा० सागरोपम पु० पूर्व क्रोड ती. तीन भा० भागम० मध्य अ० अधिक क० कर्म स्थिति क० कर्म ना नाम गो० गोत्र ज. जघन्य असे आठ मुहूर्त उ० उत्कृष्ट वी० बीस सा० सागरोपम को क्रोडा क्रोड दो० दो वा० वर्ष स० सहस्र . कोसं जहा नाणावरणिजं ॥ मोहणिजं जहष्णं अंतोमुहुत्तं उक्कोसं सत्तरि सागरोवम कोडाकोडीओ, सत्तयवास सहस्साणि जाव निसेओ॥ आउगं जहणं अंतोमुहत्तं उक्कोसं तेत्तीसं सागरोवमाणि, पुवकोडि तिभागमज्झाहियाणि कम्मा?ई कम्मनिसेओ ॥ नाम गोयाणं जहष्णं अट्ठमुहुत्ता उक्कोसं वीसं सागरोवम कोडाकोडीओ, दोणिय वास सहस्साणि, अबाहा, अबाहूणिया, कम्मट्टिई कम्मनिसेओ ॥ अंतउत्कृष्ट तीस कोडाक्रोड सागरोपम. अबाधा काल तीन हजार वर्ष का. मोहनीय कर्म की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट ७० क्रोडाक्रोड सागरोपम अबाधा काल ७ हजार वर्ष. आयुष्य की जघन्य अंत मुहूर्त उत्कृष्ट तेत्तीस सागरोपम व क्रोड पूर्व का तीसरा भाग अधिक नाम क गोत्र की जघन्य आठ मुहूर्त उत्कृष्ठ बीस क्रोडाकोड सागरोपम. अबाधा काल दो हजार वर्ष का. अंतराय की जघन्य अंतर्मुहूर्त
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी मार लाप्रसादजी *
भावार्थ
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