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शब्दाश
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ह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
अ० अनंत ते• इसलिये ॥ ४ ॥ व० वस्त्र भं० भगवन् किं. क्या सा० सादि स० सांत च० चार भांगे । ०गो० गौतम व वख सा० सादि स० सांत अ० शेष ती. तीन का ५० प्रतिषध ज. जैसे मं० भगवन्
सा: सादि १० सांत त तैसे जी जीव किं. क्या मा० मादि स सान्त च. चार भांगे पु०१० पृच्छा गो० गौतम सा० सादि सा० सान्त च०. चारों भा० कहना के० कैमे गो० गौतम ने 6
अणादीए अपज्जवसिए से तेण?णं ॥ ४ ॥ वत्थेणं भंतें ! किं सादीए सपज्जवसिए चउभंगो ? गोयमा ! वत्थे सादीए सपजवसिए अवसेसा तिण्णिवि पडिसेहेयव्वा जहाणं भंते ! वत्थे सादीए सपजवासए नो सादीए अपज्जवसिए, नो अणादीए सपज
वसिए, णो अणादीए अपजवसिए ॥ तहा जीवा किं सादीया सपजवसिया चउभंगो, मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकते हैं इसलिये ऐसा कहायया है ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! क्या वस्त्र सादिसान्त,
दि अनंत. अनादिक्षान्त व अनादि अनंत? अहो गौतम ! वस्त्र में सादिसान्त भांगा मिलता है. शेष तीन भांगे नहीं मीलते हैं. अहो भगवन् ! जैसे वस्त्र सादिसान्त है वैसे ही जीव क्या सादिसान्त,90 सादि अनंत, अनादिसान्त, व अनादि अनंत है ? अहो गौतम ! जीव में चारों भांगे पाते हैं. अहो । भगवन् ! यह किस तरह ! अहो गौतम ! नरक, तिर्यंच, मनुष्य व देव इन चारों गति आश्रित सादिसान्त हैं क्योंकि उक्त चारों गति में जीव उत्पन्न होते है सो आदि और चवते हैं सो अंत, सिद्ध
छठा शतक का तीसरा उद्देशा
भावार्थ
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