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शब्दार्थ
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१. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
भगवन् व० वस्त्र का पो० पुद्गलोपचय सा० सादि स० सान्त त० तैसे नी. जीवों को क० कर्पोपचय * में पु० पृच्छा गो० गौतम अ० कितनेक जी० जीवों को क. कोपचय सा० सादी स० सान्त अ०१ कितनेक अ० अनादि स० सान्त अ० कितनेक अ० अनादि अ० अनंत नो नहीं सा० सादि अ० १. अनंत के कैसे गो० गौतम इ० ईर्यापथिक बं. बंध के क. कर्मोपचय सा. सादि स. सान्त भ० भवसिद्धिक क० कर्मोपचय अ० अनादि:स० सान्त अ० अभवसिद्धिये का क० कर्मोपचय अ० अनादि __ अत्थेगइयाणं जीवाणं कम्मोवचए, सादीए समजवसिए, अत्थेगइए अणादीए सपजवसिए
अत्थेगइए अणादीए अपज्जवासए, नोचेवणं जीवाणं कम्मोवचए सादीए अपजवसिए से केणद्वेणं ? गोयमा ! इरियावहियाबंधस्स कम्मोवचए सादीए सपज्जवसिए,
भवसिद्धियस्स कम्मोवचए अणादीए सपजवसिए, अभवासिद्धियस्स कम्मोवचए है. अहो भगवन् ! यह किस तरह है ? अहो गौतम ! र्यापथिक बंध का कर्मोपचय सादिपान्त है. क्योंकि उपशान्त व क्षीण मोहनीय गुणस्थानवी जीव ऐसा कर्मबंध करते हैं कि जो पहिले समय में बांधते हैं, दूसरे समय में वेदते हैं और
सरे समय में वेदते हैं और तीसरे समय में निर्जरते हैं. भवसिद्धिक जीवों को अनादिसान्त हैं क्योंकि उन के कर्मों की आदि नहीं है परंतु वे कर्मों का क्षय, करके मोक्ष में जावेंगे इसलिये सान्त है। अभवसिद्धिको कर्मोपचय अनादि अनंत है. क्योंकि उन को कर्मों की आदि नहीं होती है वैसे ही
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ