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________________ ७६२ शब्दार्थ जी० जीवों को ति तीन प० प्रयोग प० प्रयोग से जी० जीव क० कर्मोपचय ५० प्रयोग से नो० नहीं + वी० स्वभाव मे ए० ऐसे स• सब पं० पंचेन्द्रिय को ति. तीन ५० प्रयोग भा० कहा पु० पृथ्वीकाय ए० एक पं० प्रयोग से ए० ऐसे जा० जावत् व० वनस्पति का० काया वि. विकलेन्द्रिय दु० दोमकार क प० प्रयोग प० कहे व० वचन प्रयोग का काय प्रयोग ए. ऐसे ज० जिन को जो जो प० प्रयोग 1 गेणं जीवाणं कम्मोवचये पयोगसा नो वीससा, एवंसव्वेसि पंचिंदियाणं तिविहे पयोगे भाणियव्वे, ॥ पुढविकाइयाणं एग विहपओगेणं, एवं जाव वणस्सइ काइया, ॥ विगलिंदियाणं दुविहे पओगे पण्णत्ते तंजहा-वइप्पयोगेय, कायप्पओगेय, इच्चेतेणं दुविहेणं पयोगेणं कम्मोवचये पयोगसा नोवीससा से एणं अटेणं जाव नो वीससा ॥ भावार्थ नहीं होता है परंतु प्रयोग से होता है. अहो भगवन् ! किस प्रकार जीवों को प्रयोग से कर्म पुद्गलों का उपचय होता है ? अहो गौतम ! जीवों को तीन प्रकार का प्रयोग कहा. १ मन प्रयोग, २ वचन प्रयोग व ३ काय प्रयोग. इन तीन प्रयोग से जीव कर्मों का उपचय करते हैं परंतु स्वभाव से नहीं करते हैं. ऐसे ही सब पंचेन्द्रिय का जानना. पृथ्वीकायिकादिक पांच स्थावर को मात्र एक काय प्रयोग है और विकलेन्द्रिय को काया व वचन ऐसे दो प्रयोग हैं. इसलिये पांच स्थावर एक काया का प्रयोग कर से व विकलेन्द्रिय काया व वचन ऐसे दोनों के प्रयोग से कर्म का उपचय करते हैं, इस तरह निम को 4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मनि श्री अमोलक ऋषिजी *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* -
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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