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शब्दार्थ
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अ० अता क्रिया गले को अ. अल्प वेदना वाले को स० सब से पो० पुद्गल भि. भेदाते हैं छि०१: छेदाते हैं वि० विनाश पाते है ५० वारंवार विना पाते हैं स० सदैव त० उप्त का आ० आत्मा मु. रूपपने ५० प्रशस्त ने० जानना जा. यावत् स० सखपने भ० वारंवार प० परिणमते है ई. हां गो. गौतम जा० यावत् प० परिणमते हैं के कैसे गो गौतम व० वस्त्र ज• मेला ५० कीचड वाला, म० कठिन मेलवाला र०रजयुक्त आ० अनुक्रपसे प०पराक्र करते मु०सद पा०पानीसे घो घोते स०सब पो० पुद्गल
छिज्जनि,सव्वओ पोग्गला विडंसंति सयओ पोग्गला परिवद्धसंति, सयासमियं पोग्गला भिजति,छिजंति,विडंसंति,परिवद्धसंति,सयासमियंचणं तस्स आयारूवताए पसत्थं नेयव्वं जाव सुहत्ताए, नोदुक्खत्ताए भुजो भुजो परिणमइ ? हंता गोयमा ! जाव पारणमइ। से केण?णं? गोयमा! से जहा नामए वत्थस्स जल्लियस्सबा, पंकियस्सवा, मइलियस्सवा, रतिल्लियस्सवा आणुपुव्वीए पारकमिजमाणस्स सुद्धेणं वारिणा धोव्यमाणस्स सव्वओ पोग्गला या पारीवधसं होते हैं ? अथवा सदैव निरंतर प्रवल भेदाते हैं यावत् विशेष नष्ट होते हैं. उस का आत्मा अच्छे रूप, वर्ण, गंध, रस व स्पर्शपने यावत् सुखपने वारंवार क्या परिणमता है ? हां गौतम ! ऐमा होता है. अहो भगवन् ! यह किल तरह ? अहो गौतम ! जैसे मैल, कीचड व रज से भरा हुवाई वस्त्र को शुद्ध पानी से धोने से सब मलिन पगलों नष्ट हो जाते हैं वैसे ही अल्प कर्म, आश्रव,
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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