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________________ शब्दाय ७५८ 4.8 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + वदना वाले स० सब से पो पुद्गल ब. बंधाते हैं म० मब पो० पुद्गल चि० चयहोते हैं उ० उपचय होते हैं स० सदा स० निरंतर त० उस का आ० आत्मा दु. दुष्टरुपपने दु० दुष्ट वर्णपने दु० दुष्ट गंधी पने दु. दुष्ट रसपने दु० दुष्ट स्पर्श पने अ० अनिष्ट अ० अकांत अ. अप्रिय, अ० अशुभ अ० अमनोज अ० अमणाम अ० नहीं इच्छने योग्यपने अ० नहीं चिंतवने योग्य अ० जघन्यपने नो नहीं उ० मुख्यपने दु. दुःखपने नो• नहीं मु० सुखपने भु. वारंवार प० परिणमते हैं ई० हां गो. गौतम म० महाकर्म सव्वओ पोग्गला उवचिजंति, सयासमियं पोग्गला बझंति, सयासमियं पोग्गला चिजंति, सयासमियं पोग्गला उवचिजंति, सयासमियं च णं तस्स आया दुरूवत्ताए, दुवण्णत्ताए, दुगंधत्ताए दुरसत्ताए, दुफासत्ताए, अणि?त्ताए, अकंत-अप्पिय-असुभ अमणुण्ण-अमणामत्ताए-अणिच्छियत्ताए, अभिज्झियत्ताए, अहत्ताए, नोउद्वृत्ताए, अथवा जीव के सब प्रदेश आश्रित पुद्गलों का क्या बंध, चय, व उपचय होता है ? अथवा सदैव निरन्तर उन पुदलों का बंध, चय व उपचय होता है और जिन को कर्म का बंध, चय व उपचय होता है। उनका आत्मा बाह्यात्मा ] क्या दष्ट वर्ण, गंध, रस. व स्पर्शपने. अनिष्ट अकांत. अप्रिय, अमनोन व अ-4 मनामपने, अथवा नहीं इच्छने योग्य, नहीं चितवने योग्यपने, जघन्यपने, मुख्यपने, व दुःखपने, वारंवार परिणमता है ? हां गौतम ! सब वैसे ही होता है. अहो भगवन् ! यह किस तरह ! अहो गौतम ! . प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * ammam भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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