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शब्दार्थ
लोहे क० स्वीला क करण म० महावेदना जी जीव छ, छट्ठा स० शतकका प०प्रथम उउद्देशा॥६॥२॥ १. रा. राजगृह न० नगर जा. यावत् ए. ऐसा व० बोले आ० आहार उ० उद्देशा जो० ५०. पनवणा में स० सब नि० निरवशेष ने जानना. छ. छट्ठा सशतक का वि० दूसरा उ० उद्देशा स०समास॥६॥२
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भंतेत्ति ॥ छ? सयस्स पढमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ६ ॥ १॥ . रायगिहं णगरं जाव एवं वयासी-आहारुद्देसो जो पण्णवणाए सव्वो निरवसेसो नेयन्यो । सेवं भंते भंतेत्ति ॥ छट्ठसयस्स बिइओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ ६ ॥ २ ॥
49 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह छठा शतक का पहिला उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ६॥ १ ॥
प्रथम उद्देशे में वेदना का अधिकार कहा. वह वेदना आहारवन्त जीव को होती है इसलिये आगे आहार का अधिकार कहते हैं. राजगृही नगरी में गुण शील नामक उद्यान में श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी को भगवान गौतम स्वामी वंदना नमस्कार कर पूछने लगे कि अहो भगवन् ! नरक के जीवोंको क्या सचित्त, अचित्त, या मीश्र का आहार है ? अहो गौतम ! नरक के जीवों सचित्त आचित्त का आहार करते हैं परंतु मीश्र का आहार नहीं करते हैं. इत्यादि आहार संबंधी सब वर्णन पनवणा सूत्र जैसे जानना. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह छठा शतक का दूसरा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥६॥२॥