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बाब्दार्थ प्ररूपे तं० वह ज० यथा म० मन करण व० वचन करण का काया करण क. कर्म करण ने
नारकी को भं भगवन् क. कितने प्रकार के क. करण प० प्ररूपे म मनकरण जा० यावत् क०
ण एक ऐसे पं० पंचेन्द्रिय स. सब में च. चार प्रकार के क. करण १० प्ररूपे ए. एकेन्द्रिय दु० दोप्रकार के का० काय करण क० कर्म क. करण वि० विकलेन्द्रिय को व० वचन करण का०ॐ
चउविहे करणे पण्णत्ते, तंजहा मणकरणे, वइ करणे, काय करणे, कम्म करणे, नेरइयाणं भंते ! कइविहे करणे ५० तं. मणकरणे जाव कम्मकरणे, एवं पंचिंदियाणं
सव्वेसिं चउन्विहे करणे पण्णत्ते, एगिदियाणं दुविहे काय करणेय कम्म करणेय, भावार्थ
करण के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! करण के चार भेद कहे हैं मन करण, से वचन करण, काया करण व कर्म करण. अहो भगवन् ! नारकी को कितने करण ।
हैं ? अहो गौतम ! नारकी को चार करण कहे हैं. १ मन करण, वचन करण, काया करण, , व कर्म करण. उसी प्रकार जितने पंचेन्द्रिय जीव हैं उन सब को चार करण होते हैं एकेन्द्रिय
को काय करण व कर्म करण ऐसे दो करण होते हैं, और तीन विकलेन्द्रिय को काय, वचन व कर्म 00 ऐसे तीन करण होते हैं ॥४॥ अहो भगवन् क्या नारकी करण से असाता वेदनीय वेदते हैं या अकरण
से असाता वेदनीय वेदते हैं. अहो गौतम ! नारकी करण से असाता वेदनीय वेदते हैं परंतु अकरण से
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
छठा शतकका पहिला उद्देशा