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शब्दार्थ ||
- अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी +
भावार्थ ।
शुष्क त० तृण ह० हस्त जा० अनि में प० डालते हुए खि० शीघ्र भ० भस्म को आ० प्राप्त होता है हैं ० हां भ० भस्म को आ० प्राप्त होता है ए० ऐसे ही गो० गौतम स० श्रमण नि० निर्ग्रन्थ अ० यथा बादर क० कर्म जा० यावत् म० महापर्यवसान वाले भ० होते हैं से० अथ ज० जैसे के० कोई पु० पुरुष त ० तप्त
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
प्राप्त होता है ए० ऐसे
अ० लोहे में उ० पानी का बि० बिन्दु ना० यावत् ई० हां विध्वंस को आ गो० गौतम स० श्रमण नि० निर्ग्रन्थ जा० यावत् म० महापर्यवसान वाले भ०
होते हैं से० अथ ते ०
{ इसलिये जे० जो म० महावेदना वाले से० वह म० महानिर्जरा वाले जा० यावत् नि० निर्जरा वाले ॥ ३ ॥ क० कितने प्रकार क भं० भगवन् क० करण प० प्ररूपे गो० गौतम च० चार प्रकार के क० करण प० कंइरिसे तत्तंसि अथकवल्वंसि उदगबिंदु जाव हंता विद्धंसमा गच्छइ, एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंथाणं जाव महापज्जवसाणा भवति ॥ से तेणट्टेणं जे महावेयणे से महानिज्जरे जाव निज्जराए ॥ ३ ॥ कइविणं भंते! करणे पणते ? गोयमा ! पडने से शीघ्र नष्ट होता है वैसे ही श्रमण निर्ग्रन्थ के बादर कर्म पुगलों नष्ट होजाते हैं. इसी कारन से कहा है कि जो महा वेदनावाले होते हैं वे महा निर्जरावाले होते हैं और जो महा निर्जरावाले होते हैं।
वे महा वेदनावाले होत हैं. और महा वेदना व अल्प वेद वाले में जो प्रशस्त निर्जरावाला है वह श्रेष्ट - { प्रधान होता है || ३ || वेदना करण से होती है इसलिये
करण का प्रश्न करते हैं. अहो भगवन्
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