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शब्दार्थी वख खं० खंजन राग से र० रक्त से वह व० वस्त्र सु० सरालता से धोया जावे मु० अच्छी तरह रंग 1 नीकाला जावे सु० अच्छा पराक्रम वाले ए० ऐसे ही गो गौतम स० श्रमण निः निर्ग्रन्थ को अ० यथा
बादर क० कर्म सि० शिथिल किये हुए नि० निष्टितार्य क० किये हुवे वि० परिणमेहुए खि० भीघ्र विविधंस भ० होते हैं जा. जहांलग ता० वहांलग ते वे वे. वेदना वे• वेदते हुवे म. महा निर्जरा म० महापर्यवसान भ० होते हैं से० अथ ज० जैसे के० कोई पु० पुरुष सु० मूका त. तृण ह० हस्त में जा० अग्नि में ५० डाले से. अथ णू शंकादी गो० गौतम से• वह मु. है महानिजरा महापज्जवसाणा भवंति, से जहा नामए केइ पुरिसे सुकं तणहत्थयं । E. जायतेयंसि पक्खियेजा .सेनूणं गोयमा से सुके तणहत्थए जायतेयंसि पक्खित्ते
समाणे खिप्पामेव मसमसा विजइ ? हंता मसवसाविजइ, एवामेव गोयमा समणाणं निगंथाणं अहाबायराइं कम्माइं जाव महापज्जवसाणाई भवंति, ॥ से जहा नामए
ही अहो गौतम ! श्रमण निग्रंथ ने बादर कर्म पुद्गलों को मंदविपाकवाले बनाये, रस रहित किये, और भाषार्थीव नष्ट होवे वैसे बनाये. जहांलग उन को वे कर्मों उदय में रहते हैं वहांलग भी उन्हे वेदते हुवे
हा निर्जरा व महा पर्यवमान करते हैं. जैसे शुष्क तृण आग्नि में डालते ही जल जाता है वैसे ही श्रमण निम्रन्थ पादर कर्म पुद्गलों का विनाश करते हैं. और जैसे तप्त लोहे की सलाका पर पानी का बिन्दू
4280- पंचमांग विवाह पण्पत्ति (भगवती) 48
888 छठा शतकका पहिला उद्देशा 482
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