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शब्दार्थ
भावार्थ
१३ अनुवादकं बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भ० होते हैं से० अथ ज० जैसे के० कोई पु० पुरुष अ० एरण को आ० कुडते हुवे म० बडे पडे स० | शब्द से घो० घोष से प० परंपरा घा० घात से णो० नहीं स० समर्थ ती० उस अ० ऐरण के अ० यथा बादर पो० पुद्गल प० नीकालने को ए० ऐसे ही गो० ! गौतम ने० नारकी को पा० पापकर्म गा० दृढ किये हुये जा० यावत् नो० नहीं म० महापर्यत्रसान वाले भ० होते हैं भ० भगवन् त
वहा जे० जो व
जावं नो महापजवसाणाई भवंति भगवं तत्थ जे से वत्थे खंजणरागरते सेणं वत्थे सुधोयतराए चेव, सुवामतराए चेव सुपरिकम्मतराए चैत्र, एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंथाणं अहा बायराई कम्माई, सिढिली कयाई, निट्टियाई कडाई विष्परिणामियाई खिप्पामेव वित्थाई भवति ॥ जावइयं तावइयं विणं ते वेयणं वेएमाणा पाप कर्म बहुत दृढ बन्धनवाले होते हैं, बहुत चीकने होते हैं, निचत्त होते हैं, निकाचित होते हैं. इस से (नारकी उक्त कर्मों भोगवे विना नहीं छूटते हैं. इस तरह महावेदना वेदते हुवे नारकी महा निर्जरा) { नहीं कर सकते हैं वैसे ही उन का महा पर्यवसान-निर्वाण नहीं होता है. जैसे पुरुष एरण पर लोहा {रखकर बडे २ शब्दों से व घोष से एक पीछे एक बडे बडे घाव मारते हुवे उस के बाहर पुगलों दूर करने को समर्थ नहीं होता है वैसे ही नारकी पूर्वकृत पाप कर्मों को दूर करने को व निर्वाण प्राप्त करने को समर्थ नहीं होते है. और जैसे खंजन से भरा हुआ क्स्त्र मरलता पूर्वक स्वच्छ व शुद्ध होता है वैसे
# प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
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