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________________ - शब्दार्थ वह म. महावेदना वाले म महावेदनावंत अ० अल्पं वेदनावंत में से बह से श्रेय जे. जो ५० प्रशस्तनिर्गवाले हैं. हां गो० गौतम जे० जो म. महावेदना वाले ए. ऐसे ॥ २ ॥ छ० छही स० 300 सातवी भ० भगवन् पु. पृथ्वी में ने० नारकी म० महावेदना वाले हैं. हां म० महावेदना वाले ते. वे भ० भगवन् स० श्रमण नि. निर्ग्रन्थ से म० महानिर्जरा वाले गो० गौतम णो० नहीं इ० यह अ० अर्थ स० समर्थ से वह के• कैसे अ० कहा जावे अ० अर्थ से भ० भगवन् ए. ऐसा बु० कहाता हंता गोयमा ! जे महावेयणे एवं चेव ॥ २ ॥ छ? सत्तमासुणं भंते ! पुढवीसु नेरइया महावेयणा ? हंता महावेयणा, तेणं भंते ! समणेहितो निग्गंथेहितो महानिजरतरागा ? गोयमा ! णो इणटे समटे । से केणं खाइ अटेणं भंते ! एवं युच्चइ जे महावेयणे जाव पसत्थ निजराए ?गोयमा ! से जहा नामए दुवे वत्था सिया एगेवत्थे कदम रागरत्ते, एगेवत्थे खंजण रागरत्ते. एएसिणं गोयमा! दोण्हं वत्थाणं कयरे भावार्थ IF वेदना व अल्प वेदनावाले में जो प्रशस्त निर्जरावाला है वह क्या श्रेय-प्रधान है ? हां गौतम ! जो | महावेदनावाला होता है वह महा निर्जरावाला होता है और जो महा निर्जरावाला होता है वह महा। 18 वेदनावाला हो है, वैसे ही महावेदना व अल्प वेदनावन्त में जो प्रशस्त निर्जरावाला होता है वह श्रेष्ठ है ॥ २॥ बहो भगान : क्या छठी सातवी पृथ्वी-नरक. में नारकी महा वेदनावाले हैं ? हां, पंचमाङ्ग विवाह पण्णात ( भगवती ) सूत्र छठा शतकका पहिला उद्देशा 380
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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