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शब्दार्थ
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श्री अमोलक
प्रकार के दे० देवलोक भ० भवनवासी वा० वाणव्यंतर जो० ज्योतिषि वे० वैमानिक भे० भेदसे भ० भवन * वासी द० दश प्रकार के वा वाणव्यंतर अ० आठ प्रकार के जो ज्योतिषी पं० पांच प्रकार के वे० वैमानिक दु० दो प्रकार के गा गाथा कि० क्या इ.यह रा० राजगृह उ० उद्योत अं० अंधकार स समय पा० पार्श्वनाथ के अं• शिष्य की पु० पूच्छा रा० रात्रिदिन दे. देवलोक से० वैसे ही भ० भगवन् प० पांचवा स० शप्तक का न० नववा उ० उद्देशा स० संपूर्ण ॥ ५॥९॥ x
x पण्मत्ता ? गोयमा ! चउन्विहा देवलोगा पं० तं• भवणवासी, वाणमंतरा; जोइसिया, वेमाणियाभेएणं, भवणवासी देसविहा, वाणमंतरा अट्टविहा, जोइसिया पंचविहा, वेमाणिया दुविहा ॥ गाहा- किंमियं रायगिहतिय, उज्जोय अंधयार समएय । पासंतिवासिपुच्छा राइंदिय देवलोगाय ॥ १ ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ पंचम सयरस नवमो उद्देसो सम्मत्तो ।। ५ ॥ ९॥ *
* प्रकार के देवलोक कहे हैं भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी व वैमानिक. उस में से भवनपति के दशक भेद, वाणव्यन्तर के आठ भेद, ज्योतिषी के पांच भेद, व वैमानिक के दो भेद. अब इस उद्देशे का सारांश कहते हैं ? राजगृही नगरी किस को कहना, उद्योत व अंधकार, समय, पार्श्वनाथ स्वामी के संतानीये का रात्रि दिन संबंधि प्रश्न, व देवलोक. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह पांचवा शतक का नववा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥५॥९॥
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि
* प्रकाशक-राजावादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ