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अ०
मत
प०
थशब्द| चार जा० याम रूप ध० धर्म से पं० पांच म० महाव्रत स० प्रतिक्रमण सहित ध० धर्म उ० अंगीकार कर वि० विचरने को यथासुख दे० देवानुप्रिय मा० विलंब त० तब ते० वे पा० पार्श्वपत्य थे० स्थविर भ० भगवंत जा० यावत् च० छेला उ० उश्वास नि० निश्वास मे सि० सिद्ध हुवे जा० यावत् स० सब दुः दुःखों से प० रहित हुवे अ० कितनेक दे० | देवलोक में उ० उत्पन्न ॥ ९ ॥ क० कितनेक मं० भगवन् दे० देवलोक प० प्ररूपे गो० गौतम च० चार एवं वयासी-इच्छामिणं भंते! तुझं अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिकमं धम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ? अहासुहं देवाणुप्पिया ! मापडिबंधं तरणं तेपासावचा थेरा भगवंतो जाव चरिमेहिं उस्सासनिस्सासेहिं सिद्धा जाव सव्वदुक्खपहणा. अत्थेगइया देवलोसु उववन्ना ॥ ९ ॥ कइविहाणं भंते ! देवलोगा भगवन्त श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर ऐसा कहने लगे कि अहो भगवन् आप की पास से चार याम रूप धर्म से पांच महाव्रत रूप धर्म अंगीकार करने को इच्छते हैं. अहो देबानुप्रिय ! तुम को जैसे सुख होवे वैसे करो, विलम्ब मत करो. फीर वे पार्श्वनाथ स्वामी के संतानिये { स्थविर भगवन्त चरिम उश्वास निश्वास में सिद्ध हुवे, यावत् सब दुःखों से रहित हुने और कितनेक देवलोक में उत्पन्न हुवे ॥ ९ ॥ अहो भगवन् ! देवलोक कितने प्रकार के कहें ? अहो गौतम ! चार
सूत्र
भावार्थ
438 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
पांचवा शतकका नववा उद्देशा 03-808808
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