SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 770
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४० शब्दार्थ देखते हैं. जो० जो लो० दीखता है से वह लो० लोक हं० हा भ० भगवन ते० इस से अ० आर्य ए०११ ऐसा वु० कहा है अ० असंख्यात तं० वैसे ही ॥ ८ ॥ त० उसदिन से ते वे पा० पार्श्वनाथ के अ० अपत्य थे० स्थविर भ० भगवंत स० श्रमण भ• भगवंत म० महावीर को प० जानते हैं स० सर्वज्ञ स० सर्वदर्शी त० तब ते वे थे० स्थविर भ० भगवंत सः श्रमण भ० भगवंत म महावीर को बं० वंदनाः करके न० नमस्कार करके एक ऐसा व० बोले ३० इच्छता हूं भ० भगवन् तु. तुम्हारी अं० समीप चा० ___त्ता २, निलीयंति ॥ से भूए उप्पन्नेविगए परिणएं अजीवेहिं लोकइ पलोकइ । जे लोकइ सेलोए, हंता भगवं से तेणटेणं अज्जो एवं वुच्चइ असंखेजे तंचेव ॥८॥तप्पभिई चणं ते पासावच्चेजा थेरा भगवंतो समणं भगवं महावीर पञ्चभिजाणंति सव्वण्णुं सव्वदरिसिं ॥ तएणं ते थेरा भगवंतो समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ नमसइत्ता भावार्थ परिता (प्रयेक ) गात्रे होती हैं. जहां बहुत जीव उत्पन्न होवे व नष्ट होवे और इस तरह उत्पन्न व विनाश का स्वभाव होवे वह लोक कहाता है. अजीव पदलादिक से जो उत्पन्न विनाश व परिणम के स्वभाववाला दीखने में आवे सो लोक कहाता है. इस से अहो आर्य ! असंख्यात प्रदेशात्मक लोक में अनंत रात्रि " दिन व परिता रात्रि दिन उत्पन्न हुवे, होते हैं व होवेंगे ॥ ८ ॥ उस दिन से पार्श्वनाथ स्वामी के संतानी ये स्थविर भगवन्त श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी को सर्वज्ञ सर्वदशी जानने लगे. फीर वे स्थविर । अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी gro * प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy