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- शब्दार्थ पास ठि० उपस्थित होकर ए० ऐसा व० बौले से० अथ णू० शंकादर्शी अ० असंख्यात लो० लोक अ० अनंत रा० रात्रिदिन उ० उत्पन्न हुए उ० उत्पन्न होते हैं उ० उत्पन्न होवेंगे वि० नष्ट हुवे वि० नष्ट होते हैं वि० नष्ट होवेंगे १० परित्ता रा० रात्रिदिन ३० उत्पन्न हुवे हं० हां अ० आर्य अ० असंख्यात {लो० लोक में अ० अनंत रा० रात्रिदिन तं० वैसे ही के० कैसे जा० यावत् वि० विनाश हुवे से० अथ णू० शंकादर्शी भो० अहो अ० आर्य पा० पार्श्वनाथ अ० अरिहंत पु० पुरुषादाणि ने सा० शाश्वत लो उप्पज्जिंसुवा उप्पजंतिवा, उप्पज्जिस्संतिवा, विगच्छिंसुवा, विगच्छितिवा, विगच्छिस्संतिवा, परित्ता राईदिया उप्पजिंसुवा ३, ? हंता अजो ! असंखेजेलोए अनंता राइंदिया तं चैव । से केणट्टेणं जाव विगच्छिस्संतिवा ? सेणूणं भो अज्जो ! पासेणं अरहया पुरिसादाणिएणं सासएलोए बुइए, अणादीए, अणवदग्गे परित्ते, परिवुडे, ट्ठा विच्छिणे, मज्झे संखित्ते, उप्पिं विसाले, अहे पलियंकसंठिए, मज्झे वरवइर हुवे, होते हैं या होवेंगे अथवा नष्ट हुवे, नष्ट होते हैं व नष्ट होवेंगे ? परित्ता रात्रिदिन उत्पन्न हुवे, होते हैं व होवेंगे, या नष्ट हुवे, होते हैं या होवेंगे ? हां आर्य ! असंख्यात प्रदेशात्मक लोक में अनंत रात्रि दिन उत्पन्न हुवे होते हैं व होवेंगे, वैसे ही नष्ट हुवे, होते हैं व होवेंगे. परित्ता रात्रिदिन उत्पन्न हुवे, होते हैं व होवेंगे वैसे ही नष्ट हुए, होते हैं व होवेंगे. अहो भगवन् ! यह किस तरह है ? अहो
सूत्र
भावार्थ
9 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला' सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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