________________
शब्दाथ
सूत्र
भावार्थ
'
६० हां अ० है के० कैसे गो० गौतम इ० यहां ते० उन को मा० मान इ० यहां ते० उन को प०प्रमाण (इ० यहां ते उन को ए ऐसा प० जाना जाने स० समय जा० यावत् उ० उत्सर्पिणी ते० इसलिये वा० वाणव्यंतर जो० ज्योतिषी वे० वैमानिक को ज जैसे ने० नारकी को ॥ ७ ॥ ते उस काल ते० उस स० समय में पापाश्वनार्थ के अ० अपत्य ( संतानीये थे० स्थविर भ० भगवन्त जे० जहां स०१ श्रमण भ० भगवंत मः महावीर ते० वहां उ० आकर के स० श्रमण भ० भगवंत म० महावीर की अ गोयमा ! इह तेसिं माणं इह चेत्र तेसिं पमाणं इह तेसिं एवं पण्णायइ, तंजहासमयाइवा जाव उस्सप्पिणीइवा, से तेणट्टेणं । वाणमंतर जोइस वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं ॥ ७ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज़ा थेरा भगवंतो जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छइत्ता, समणस्स भगवओ महावीररस अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी सेणूणं भंते ! असंखेजेलोए अनंता राईदिया गौतम ! मनुष्य लोक में सूर्य का चलना होता है जिस से समय, आवलिका श्वासोश्वास यावत् अवसर्पिणी {उत्सर्पिणी जान सकते हैं. दाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक का नारकी जैसे जानना || ७ | उस काल उस * समय में श्री पार्श्वनाथ स्वामी के संतानिये श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास आये और सामनेखडे रहकर ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! क्या असंख्यात मदेशात्मक लोक में अनंत रात्रिदिन
28 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
पांचवा शतक का नवत्रा उद्देशा 8808
७३७