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शब्दार्थ
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 203 अनुवादक-बालब्रह्मचारी
यावत् स० समय आ० आवलिका ओ० अवसर्पिणी गो० गातैम इ० यहां ते० उनका मा० मान इ० यहां ते. उनका प. प्रमाण इ. यहां ते. उनको ए. ऐसा प० जाना जावे ते वह स०
मय जा. यावत् १० उत्सपिंगी ए. ऐसे जा० यावत् पं०पंचेन्द्रिय तितिर्यंच ॥६॥ अ०है भ०भगवन् । म० मनुष्य को इ० यहां रहे हुवे ए. ऐसा ५० जाना जाता है स० समय जा. यावत् उ० उत्सर्पिणी
इह तेसिं माणं, इह तेसिं पमाणं, इह तेसिं एवं पण्णायते. तं समयाइवा जाव। उस्साप्पिणीइवा, से तेणं जाव नो एवं पण्णायए समयाइवा जाव उस्सप्पिणीइवा, एवं जाव पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया ॥ ६ ॥ अत्थिणं भंते ! मणुस्साणं इहगयाणं
एवं पण्णायइ तं समयाइवा, जाव उसाप्पणीइबा? हंता अत्थि ॥ से केण?णं ? घलिका, दिन, रात्रि, मास, वर्ष यावत् अवसर्पिणी उत्सर्पिणी जान सकते हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है. अहो भगवन् ! किस कारन से यह अर्थ समर्थ नहीं है ? अहो गौतम ! सूर्य का चलना मनुष्य लोक में होता है नरकादि स्थानों में नहीं होता है. इसलिये वे समय, आवलिका यावत् अवसर्पिणी उत्सर्पिणी नहीं जान सकते हैं. जैसे नारकी का कहा वैसे ही पांच स्थावर तीन विकलेन्द्रिय व तिर्यंच पंचेन्द्रिय का जानना ॥६॥ अहो भगवन् ! क्या मनुष्य समय, आवलिका यावत् उत्सर्पिणी जानने को समर्थ हैं हां गौतम ! मनुष्य समयादि जान सकते हैं. अहो भगवन् ! वे कैसे जान सकते हैं ! अहो
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ