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शब्दात कि क्या उ० उद्योत वाले अं• अंधकारवाले गो० गौतम उ० उद्योत वाले अं० अंधकार वाले भी
गो० गौतम च० चतुरेन्द्रिय को सु० शुभाशुभ पो० पुद्गल परिणम ए० ऐसे जा० यावत् म. मनुष्य को वा० वाणव्यंतर जो• ज्योतिषी वे. वैमानिक ज० जैसे अ० असुरकुमार ॥ ४ ॥ अ. है भ० भगवन् । ने नारकी त० वहां रहे हवे एक ऐसे प० जाननेवाले तं. वह ज० यथा स० समय आ० आवलिका जा. यावत् ओ० अवसर्पिणी गो गोतम णो० नहीं इ० यह अ० अर्थ स० समर्थ के० कैसे जा०
अंधयारेवि । से केणद्वेणं ? गोयमा ! चउरिंदियाणं सुभासुभा पोग्गला सुभासुभे पोग्गलपरिणामे से तेणटेणं ॥ एवं जाव मणुस्साणं, वाणमंतर जोइस वेमाणिया जहा असुरकुमारा ॥ ५ ॥ अत्थिणं भंते ! नेरइयाणं तत्थगयाणं एवं पण्णायए तं० समयाइवा,आवलियाइवा, जाव ओसप्पिणीइवा उस्सप्पिणीइवा? गोयमा ! णो इणटे सम
टे।सेकेणट्रेणंजाव समयातिवाआवलियार्तिवा ओसप्पिणीतिवा उस्सप्पिणीइवा ? गोयमा! भावार्थ इन्द्रिय को उद्योत व अंधकार दोनों होते हैं. क्योंकि उन को शुभाशुभ पुद्गल व शुभाशुभ पुद्गल परिणम go | होता है. ऐसे ही सिर्यच पंचेन्द्रिय व मनुष्य का जानना. वाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक को असुर
कुमार जैसे कहना ॥ ५ ॥ उद्योत सूर्य की कारणों से होता है. और सूर्य से काल मान भी होता है... इसलिये काल आश्री प्रश्न पूछते हैं. अहो भगवन् ! नारकी नरक लोक में रहे हुवे क्या समय, आ
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र <284
• पांचवा शतक का नववा उद्देशा