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शब्दार्थं ।
सूत्र
भावार्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
[ते० इसलिये || ३ ॥ अ० असुरकुमार भं० भगवन् किं० क्या उ० उद्योत करने वाले अं० अंधकार ( वाले गो० गौतम अ० असुरकुमार उ० उद्योत वाले नो० नहीं अं० अंधकार वाले के० कैसे गो० गौतम अ० असुर कुमार को सु० शुभ पो० पुद्गल सु० शुभ पुद्गल परिणम जा यावत् थ० स्थनित कुमार को || ४ || पु० पृथ्वी काया को जा० यावत् ते ० तेइन्द्रिय ज० जैसे ने० नारकी च० चतुरेन्द्रिय भं० भगवन् गोयमा ! नेरइयाणं असुभा पोग्गला असुभे पोग्गलपरिणामे से तेणट्टेणं ॥ ३ ॥ असुरकुमाराणं भंते! किं उज्जोए अंधयारे ? गोयमा ! असुरकुमाराणं उज्जोए नो अंधारे ॥ से केणं ? गोयमा ! असुरकुमाराणं सुभा पोग्गला सुभे पोग्गल परिणामे से तेणट्टेणं जाव एवं बुच्चइ, जाव थणियाणं ॥ ४ ॥ पुढवीकाइया जाव इंदिया जहा नेरइया । चउरिंदियाणं भंते ! किं उज्जोए अंधयारे ? गोयमा ! उज्जोएवि {परिणम है; इस से अंधकार होता है || ३ || अहो भगवन् ! अमुरकुमार को क्या उद्योत होता है अथवा अंधकार होता है ? अहो गौतम ! असुरकुमार को उद्योत होता है परंतु अंधकार नहीं होता है. क्योंकि असुरकुमार को शुभ पुद्गलों होते हैं और वे शुभपने परिणमते हैं. ऐसे ही नागकुमार यावत् {स्थनित कुमारतक जानना ॥ ४ ॥ पृथ्वीकायादि पांच स्थावर वेइन्द्रिय व तेइन्द्रिय का नारकी जैसे ( कहना. अहो भगवन् ! चतुरेन्द्रिय को क्या उद्योत अथवा अंधकार होता है ? अहो गौतम ! चतुरे
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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