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शब्दार्थको उ० उद्योत रा० रात्रि को अं अंधकार हं० हां गो० गौतम जा. यावत् अं० अंधकार से वह के० ।
कैसे गो० गौतम दि० दिन को स० शुभ पो• पुद्गल सु०शुभ पुद्गल १० परिणम रा० रात्रि को अ० अशुभ | पो. पुद्गल अ० अशुभ पो० पुद्गल प. परिणम ते० इसलिये ॥२॥ ने नारकी किं. क्या उ० उद्योत}00
ले अं० अंधकार वाले गो० गौतम ने नारकी नोक नहीं उ० उद्योतवाले अं० अंधकार वाले के कैसे गो० गौतम ने नारकी में अ० अशुभ पो० पुद्गल अ० अशुभ पो० पुद्गल प० परिणम
जाव अंधयारे, से केण्टेणं ? गोयमा ! दिवा सुभा पोग्गला सुभे पोग्गलपरिणामे, रातिं असुभापोग्गला, असुभे पोग्गलपरिणामे से तेणटेणं ॥ २ ॥ नेरइयाणं भंते ! किं उज्जोए अंधयारे ? गोयमा ! नेरइयाणं मो उज्जोए अंधयारे॥से केणटेणं?
Rago पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 488
88883. पांचवा शतक का नववा उद्देशा8ARP
भावाथ
होता है ? हां गौतम ! दिन को उद्योत व रात्रि को अंधकार होता है. अहो भगवन् ! यह किस तरह है ? अहो गौतम ! दिन को सूर्य के किरण रूप शुभ पुद्गल परिणमते हैं जिस से उद्योत होता है और रात्रि को अशुभ पुद्गल परिणमते हैं जिस से अंधकार होता है ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! क्या नारकी को उद्योत या अंधकार है ? अहो गौतम ! नारकी को उद्योत नहीं है परंतु अंधकार है. अहो भगवन् ! यह किस तरह है ? अहो गौतम ! नारकी में सूर्य के अभाव से अशुभ पुद्गलों हैं और अशुभ पुद्गल का,