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शब्दार्थ द. द्रव्य न० नगर रा० राजगृह त्ति ऐसा प० कहाता है गो० गौतम पु. पृथ्वी न० नगर स० राज.*
२७ गृह जा. यावत् स० सचित्त अ० अचित्त मी० मीश्र द० द्रव्य न० नगर रा० राजगृह से• अथ
के कैसे गो० गौतम पु० पृथ्वी जी. जीववाली अ. अजीववाली न० नगर रा० राजगृह प० कहालाई म है जा० यावत् स ० सचित्त अ० अचित्त मी० मीश्र द्रव्य जी० जीव अ० अजीव वाले न० नगर रा० . राजगृह प० कहाता है ते० इसलिये २० वैसा ॥ १ ॥ से० अथ णू० शंकादर्शी भ० भगवन् दि० दिन ।
गिहंति पवुच्चइ जाव सचित्ताचित्तमीसयाई दवाई नगरं रायागहंति पवुच्चइ । से है १ . केणटेणं ? गोयमा ! पुढवी जीवाइय, अजीवाइय, नगरं रायगिहति पवुच्चइ जाव।
सचित्ता चित्त मीसयाई दवाइं जीवाइय अजीवाइय,नगरं रायगिहंति पवुच्चइ सेतेण
द्वेणं तचेव ॥ १ ॥ सेणूणं भंते ! दिवा उज्जोए राइ अंधयारे ? हंता गोयमा !
कहना ? अहो गौतम ! पृथ्वी राजगृही कहाती है यावत् सचित्त अचित्त घ मीश्र द्रव्य अजगृही कहाते, भावार्थ
हैं. अहो भगवन् ! कैसे पृथ्वी राजगृही कहानी है, यावत् सवित्त, अचित्त व मिश्र द्रव्य राजगृही कहाते हैं. अहो गौतम ! पृथ्वी, पानी आदि स्थावर पशु मनुष्यादि सब जीव, गृह भवन शयनासनादि सब वस्तु
के संयोग से ही जीव अजीव का जहां संग्रह होता है वह नगर कहाता है. और वैसा संयोग राजगृही 14 नगरी में होने से उनको राजगृही कहा है ॥१॥ अहो भगवन् ! क्या दिन को उद्योत व रात्रि को अंधकार
दक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *