________________
शब्दार्थ है ते. उस का काल बे० उस १० समय में ना० यावत् एक ऐसा व० बोले कि० क्या इ० यह
भगवान् न० नगर म० राजगृह ति . ऐसा ५० कहाता है किं० क्या पु० पृथ्वी न० नगर रा० रामगृह १५० कहाता है आ० अप जा. यावत् व० वनस्पति ज. जैसे ए० इस का अ० अनुदेशसे पं० पंचेन्द्रिय ति० तिर्यंच की व० वक्तव्यता तक तैसे भा० कहना जा. यावत् स. सचित्त अ० अचित्त मी० मीश्र
तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी-किमिदं भंते ! णयरं रायगिहंति पकुचड़ किं पुढवी णयर रायगिहंति पयुच्चइ, आऊ नगरं रायानहति पवुच्चइ,जाव वणस्सइ जहा एयणुदेसए पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं वत्तव्वया तहा भाणियव्वा जाव सचित्ताचित्तमीसयाई, दव्वाइं नगरं रायगिहंति पबुच्चइ ? गोयमा ! पुढवौवि नगरं राय
आठवे उद्देशे में जीवों की उत्पत्ति व वृद्धि के प्रश्नोत्तर कहें. वे ग्रामदिक में होते हैं इसलिये, भावार्थ : अथवा भगवंत श्री महावीर स्वामी राजगृही नगरी में वारंवार पधारे इसलिये राजगृही नगरीका प्रश्न
पूछते हैं. उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी को भगवान् गौतम स्वामी पूछनेलगे। o कि अहो भगवन् ! इस नगरी को राजगृही क्यों कहना ? क्या पृथ्वी, अप, तेउ, वाउ, वनस्पति, यावत्
सविच अचित्त भीश्र द्रव्य वगैरह जो सातवे उद्देशे में कहे हैं उन सब पदार्थ को क्या राजगृही है।
पंचमान विवाह पणचि ( भमवती )
8380P> पांचवा शतकका नवां रदेशा