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शब्दार्थ
श्री अमोलक ऋषिजी
ब्रह्मचारीमुनि १० अनुवादक-बाला
शेष जी० मीब च. चार प० पद से भा० कहना. ॥ १६॥ पर्ववर ॥ १७॥ पर्ववत ।। १८॥ सि. सिद्ध भं० भगवन् के० कितना काल सो० वढनेवाले गो• गौतम ज• जघन्य ए. एक स० समय उ० उत्कृष्ट अं० आठ स० समय के० कितनाकालतक नि० वरावर ज जघन्य ए. एक समय उ० उत्कृष्ट छ०१, छमास से वैसे भ० भगवन् ॥५॥८॥
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* * जहण्णं एवं समयं उक्कोसं आवलियाए असंखेजइ भागं . अवट्टिएहिं वकंतिय कालो भाणियन्वो ॥ १८ ॥ सिद्धाणं भंते ! केवइयं कालं सोवचया ? गोयमा ! जहणं एकं समयं उक्कोसं अट्ठसमया. केवइयं निरुवचयनिरवचया ? जहणं एकं समयं
उक्कोसं छम्मासा सेवं भंते भंतेत्ति ॥ पंचम सयस्स अट्ठमो उद्देसो सम्मप्तो ॥५॥८॥ एक समय उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यात वा भागतक जानना. निरुवचय निरवचय का पनवणासूत्र मै विरहद्वार जैसे जानना ॥ १८ ॥ अहो भगवन् ! सिद्ध किनने कालतक सोवचन रहते हैं ? अहो गौतम ! जघन्य एक समय उत्कृष्ट आठ समय. और उन का निरुवचय काल जघन्य एक समय उत्कृष्ट छ मास का है. अहो भगवन् आपके वचन सत्य हैं. यह पांचवा शबक का आठवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ ५ ॥८॥ x
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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