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सूत्र
भावार्थ
40883- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
निरवचया ॥ १७ ॥ जीवाणं भंते ! केचइयं कालं निरुवचयनिरबच्या ? गोयमा ! सव्वष्ट्रं ॥ नेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं सोवचया ? गोयमा ! जहणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइ भागं । केवइयं कालं सावचया ? एवं चेत्र || केवइयं कालं सोवचयसावच्या ? एवं चेव ॥ केवइयं कालं निरुचचय निरवचवा ? गोयमा ! जहण्णं एवं समयं उक्कोसं बारस मुहुत्ता, एगिंदिया सव्वे सोवचया, साघचया; सव्वद्धं ॥ सेसा सव्वे सोवचयावि, सोवचयसावचयावि
निरवजय ऐसे दो भांगे पाते हैं ॥ १७ ॥ अहो भगवन् ! जीव कितने कालतक निरुवचय निरवचय रहते {हैं ? अहो गौतम ! जीव सब काल निरुवचय निरवचय रहते है. अहो भगवन् ! नारकी कितने काल तक { सोवचय रहते हैं ? अहो गौतम ! नारकी जघन्य एक समय उत्कृष्ट आवलिका का असंख्यात वा भाग तक सोवचय रहते हैं. अहो भगवन् ! नारकी कितने काल तक सावचय, व सोवचयसावयय रहते { हैं ? अहो गौतम ! जघन्य एक समय उत्कृष्ट आवलिका का असंख्यात वा भाग तक रहते हैं. मारकी निरुवचय निरवचय जघन्य एक समय उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक रहते हैं. सब एकेन्द्रिय सदैव सोवचय मावचय रहते हैं. शेष सब पृथक् २ जीवों का सोवचय, सावचय, व मोत्रचय सावचय का काल जघन्य
4 पांचवा शतकका आठवा उद्देशा १०
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