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________________ शब्दार्थ 4 १५० आश्रित आ० आत्मारंभी जा० यावत् णो० नहीं अ० अनारंभी से० वह ते० इसलिये गो० गौतम ए०* ऐसे वु० कहा जाता है अ० कितनेक जीव जा० यावत् अ० अनारंभी ॥ ३८ ॥ ० नारकी भं० भगवन् किं. क्या आ० आत्मारंभी प० परारंभी त• उभयारंभी अ० अनारंभी गो गौतम गे० नारकी णो परारंभा, जाव अणारंभा । असुहं जोगं पडुच्च आयारंभावि जाव णो अणारंभा। तत्थणं जे ते असंजया ते अविरतिं पडुच्च आयारंभावि 'जाव णो अणारंभा. से ते. 4 णटेणं गोयमा एवं वुच्चइ, अत्थेगइया जीवा जाव अणारंभा ॥३८॥ णेरइयाणं १ भंते किं आयारंभा, परारंभा, तदुभयारंभा, अणारंभा ? गोयमा ! णेरइया आया.. और अशुभ योग आश्रित आत्मारंभी परारंभी व उभयारंभी हैं परंतु अनारंभी नहीं हैं. और जो असंसंयति हैं. वे अविरति की अपेक्षा से आत्मारंभी, परारंभी, व उभयारंभी हैं परंतु अनारंभी नहीं है. इसलिये अहो गौतम ! ऐसा कहा कि कितनेक जीव आत्मारंभी, परारंभी व उभयारंभी हैं परंतु अनारंभी नहीं हैं. और आत्मारंभी. परारंभी व उभयारंभी नहीं हैं परंतु अनारंभी हैं ॥ ३८ ॥ अहो भगवन् ! नारकी आत्मारंभी, परारंभी व उभयारंभी हैं या अनारंभी हैं ? अहो गौतम नारकी आत्मारंभी, परारंभी, व प्रत्युपेक्षणादि करणसो अशुभयोग-पुढबी आऊक्काए । तेऊवाऊ वणस्सइ तसाणं ॥पडिलेहण पमत्तो। छण्हं विराहणा होइ ॥१॥ प्रमादसे प्रतिलेखना करनेवाला छ ही कायाका घातक होनाहे. ऋषिजी 8 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक *प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावाथे
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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