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________________ > शब्दाथ न्द्र में चो० चौवीस रा० रात्रिदिन वीबीस मु० मुहूर्त बं० ब्रह्मदवेलोक में च० चालीस ले०लांतक में न० । ० नेऊ म० महाशुक्र में स. साठ रा० रात्रिदिन स० सो स० सहस्रार में दो० दोसो रानिदिन आ०० आणत पा० प्राणत में मं० संख्यात मास आ. आरण अ० अच्युत में सं० संख्यात वा० वर्ष ए. ऐ F°गे अवेयक बिमान के दे० देवों का वि० विजय वे वैजयंत ज. जयंत अ० अपराजित का अ० असं-3 ख्यात वां० वर्ष स० सहस्र स० सर्वार्थ सिद्ध में प० पल्योपम का सं०. संख्यात भाग शेष पूर्ववत् ॥ १४ ॥ हुत्ता, माहिदे चउव्वीसं राइंदियाइं वीसय मुहुत्ता, बंभलोए पंच चत्तालीस राइंदियाई, लंतए नउयराइंदियाइं, महासुक्के सर्ट्सि राइंदियसयं, सहस्सारे दो राइंदियसयाइं, आणयपाणयाणं संखेजामासा, आरणच्चुयाइं संखज्जाई वासाइं एवं गेवेज देवाणं, विजयवेजयंतजयंतापराजियाणं असंखेजाइं वास सहस्साइं, सव्वट्ठसिद्धेय पलिओवमस्स संखेजभागो एवं भाणियव्वं, वढंति हार्यति, जहण्णेणं एक समयं उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं अवट्ठियाणं जं भणियं ॥ १४ ॥ प्तिद्धाणं भंते ! केवभावार्थ नव ग्रैवेयक में संख्यात वर्ष,विजय वैजयंत जयंत व अपराजित में असंख्यात वर्षसहस्र और सर्वार्थसिद्ध में पल्योपम ।। का संख्यात वे भाग तक अवस्थित काल रहता है. उन सब कावृद्धि होना व हीन हानेका काल जघन्य एक समय 1 उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यात वे भाग का है ॥ १४॥ सिद्ध भगवंत जघन्य एक समय उत्कृष्ट आठ सम ago पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती.) सूत्र 8888 पांचवा शतक का आठवा उद्देशा - 4
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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