________________
*883>
शब्दार्थ में अ० आठमास तक तमतमा में व० बारह मास ॥ ११ ॥ अ० असुर कुमार व० बढ़ते हैं हा० हीन
होते हैं ज• जैसे ने० नारकी अ० अवस्थित ज• जघन्य ए० एक समय उ० उत्कृष्ट १० अडतालीस १७ मु० मुहूर्त ए. ऐसे द° दश प्रकार के भी ॥१२॥ पूर्ववत् ॥ १३ ॥ ३० द्विइन्द्रिय ब० बढते हैं. हा० हीन
७२५ होते हैं. त• तैसे अ० अवस्थित ज जघन्य ए० एक समय उ. उत्कृष्ट दो दो अं० अंतर्मुहूर्त ए. ऐसे
याइं वालुयप्पभाए मासं, पंकप्पभाए दोमासा, धूमप्पभाए चत्तारिमासा तमाए अट्टमासा तमतमाए बारसमासा ॥ ११ ॥ असुरकुमारावि बढुति हायंति जहा नेरइया, अवट्ठिया जहण्णं एगं समयं उक्कोसं अट्ठचत्तालीसं मुहुत्ता, एवं दसविहावि ॥ १२ ॥ एगिदिया वट्ठतिवि, हायंतिवि, अवट्ठियावि एएहितिहिंवि जहण्णेणं एक समयं उक्कोसं
आवलियाए असंखेज भागं ॥ १३ ॥ बेइंदिया वडंति हायंति तहेव । अवट्ठिया भावार्थ
तक, तमतमाप्रभा में बारह मास तक नारकी अवस्थित रहते हैं. ॥ ११ ॥ असुरकुमार में वृद्धि होना व हहीन होना नारकी जैसे जानना. परंतु उनका जघन्य एकसमय उत्कृष्ट४९ मुहूर्त तक अवस्थित काल जानना. १०
ऐसे ही दश प्रकार के भुवनपतिका जानना. ॥ १२ ॥ एकेन्द्रिय का वृद्धि, हीन व अवस्थित रहने का काल जघन्य एक समय उत्कृष्ट आवलिका का असंख्यातवा भाग का है ॥ १३.॥ बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय व चतरेन्द्रिय का वृद्धि होना व हीन होना पहिले जैसे कहना और अवस्थित काल जघन्य एक समय उत्कएका
gr पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 839803>
पांचवा शतकका आठवा उद्देशा 838028
-