________________
७२४
शब्दाथ ने नारकी के० कितना काल व० बढते हैं गो० गौतम ज. जघन्य ए० एक समय उ० उत्कृष्ट आ.*
आवलिका के अ० असंख्यात भाग ए० ऐसे हा० हीन होते हैं ० नारकी के० कितने काल अ० अवपर स्थित गो. गौतम ज. जघन्य ए• पक स० समय उ० उत्कृष्ट च० चौवीस मुहूर्त ए. ऐसे स० सातों
पु० पृथ्वी में र० रत्नप्रभा में अ० अडतालीस मु० मुहूर्त स० शर्कर प्रभा च. चौदह रा० रात्रिदिन वा. वालु प्रभा मे मा० मास पं० पंकप्रभा में दो० दोमास धू० धूम्रप्रभा में च. चार माम तक तमप्रभा
वाडूंत ? गोयमा ! जहण्णं एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंनेजइभागं, एवं १ हायंतिवा । नेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं अवट्ठिया ? गोयमा ! जहण्णं एग समयं । उक्कोसेणं चउघीसं मुहुत्ता, एवं सत्तसु विपुढविसु वाटुंति हायतिभाणियब्बं णवरं अवविएसु
इमं णाणत्तं तं०रयणप्पभाए पुढवीए अडयालीस मुहुत्ता सक्करप्पभाए चउद्दस राइंदि. अहो गौतम ! जघन्य एक समय उत्कृष्ट आवलिका का असंख्यात वा भागवक नारकी बढते रहते हैं.. उतने ही कालतक हीन होते रहते हैं. अहो भगवन् ! नारकी कितने काल तक अपस्थित रहते हैं ? अहो । गौतम ! जघन्य एक समय उत्कृष्ट चौवीस मुहूर्त. सातों नारकी में वृद्धि व हीन होने का उक्त कथनानुसार जानना परंतु अवस्थित में रत्न प्रभा पृथ्वी में नारकी ४८ मुहूर्ततक अवस्थित रहचे हैं, शर्करप्रभा में चौदह रात्रिंदिन, बालुपभा में एक मास, पंकप्रभा में दोमास, धूम्रप्रभा में चार मास, तमप्रभाग आठ मास
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादभा*
भावाथे
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि