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शब्दार्थ
विवाह पणत्ति (भगवती) मूत्र 888
हा. हीन होते हैं अ० बराबर रहते हैं ॥ ७ ॥ ने० नारकी किं. क्या व० बढते हैं जा. यावत् वे० वैमानिक ।। ८॥ सि सिद्धों की पु. पृच्छा गो० गौतम सि. सिद्ध व० बढते हैं नो० नहीं हा. हीन होते हैं अ० अवस्थित ॥ ९ ॥ जी० जीव के० कितना काल अ० अवस्थित स० सब काल ॥ १० ॥
अवाट्रिया ? गोयमा ! जीवा नो वडंति, नो हायंति अवट्ठिया ॥ ७॥ नेरइयाणं भंते ! किं वद्वंति हायंति अवट्ठिया ? गोयमा ! नेरइया वढंतिवि, हायंतिवि, अबट्रियावि, ॥ जहा नेरइया एवं जाव वेमाणिया ॥ ८ ॥ सिद्धाणं भंते ! पुच्छा गोयमा ! सिद्धा वटुंति, नोहायंति, अवट्ठियावि ॥ ९ ॥ जीवाणं भंते !
केवइयंकालं अवट्ठियावि ? सव्वद्धं ॥ १० ॥ नेरइयाणं भंते ! केवइयं काल है ! अहो गौतम ! जीव नहीं बढते हैं, हीन नहीं होते हैं परंतु अवस्थित रहते हैं ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! क्या नारकी बढते हैं, हीन होते हैं या अवस्थित रहते हैं ? अहो गौतम ! नारकी बढते हैं, हीन होते हैं। और अवस्थित भी रहते हैं. नारकी जैसे चौवीसही दंडकका जानना. ॥ ८ ॥ अहो भगवन् ! क्या 0 सिद्ध बढते हैं, हीन होते हैं या अवस्थित रहते हैं ? अहो गौतम ! सिद्ध बढते हैं, परंतु हीन नही होने हैं। और अवस्थित भी रहते हैं ॥९॥ अहो भगवन् ! जीव कितना कालतक अवस्थित रहते हैं? अहो गौतम १०७ जीव सब काल अवस्थित ही रहते हैं ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! नारकी कितने काल तक बढते रहते हैं ?%
20040280 पांचवा शतक का आठवा उद्देशा६१.२१कर
भावार्थ
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