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________________ शब्दार्थ | भावार्थ 42 अनुवादक - लब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी जा० जानने को शेष पूर्ववत् ॥ ३ ॥ पूर्ववत् ॥ ४ ॥ पूर्ववत् ॥ ५ ॥ त० तब से उस ना० नारद पुत्र ने नि० निर्ग्रन्थी पुत्र अ० अनगार को वं० वंदना की न० नमस्कार किया ए० यह अ० अर्थ स० सम्यक् वि० विनय से भु० वारंवार खा० खमाया सं० संयम से जा० यावत् वि० विचरता है ॥ ६ ॥ भगवन् भ० भगवान गो० गौतम स० श्रमण जा० यावत् ए० ऐसा व० बोले जी० जीवों किं० क्या व० बढते हैं हा० हीण होते हैं अ० बराबर हैं गो० गौतम जी० जीव नो० नहीं व बढते हैं नो० नहीं भं० सा विसेसाहिया, भावादेसेणं सपएसा विसेसाहिया ॥ ५ ॥ पुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं अणगारं बंदइ नमसइ सम्मं विणणं भुजो भजो खामेइ खामेइत्ता, संजमेणं जाव विहरइ ॥ ६ ॥ भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं जाव एवं वयासी जीवाणं भंते! किं वठ्ठेति हायंति तणं से नारयनमंइसइत्ता एमटुं भावादेशसे सप्रदेशी विशेषाधिक, ॥ ६ ॥ उस नारदपुत्र अनगारने निग्रन्थी पुत्र अनगार को वंदना नमस्कार किया और सम्यक् प्रकारसे अर्थकी धारणा की पश्चात् विनय पूर्वक वारंवार खमाकर संयम व तप से अत्माको भावते हुए विचरने लगे || ६ || उस समय में श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी को भगवान गौतमने ऐसा प्रश्न किया कि अहो भगवन् ! जीव क्या बढते हैं. हीन होते हैं या अवस्थित रहते * प्रकाशक- राजाबहादुर लाल सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ७२२
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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