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________________ ७२० शब्दार्थ 4 को तं० इसलिये इ० इच्छता हूं दे० देषामुप्रिय की भं० पास ए• यह सो० सुनकर के नि• अबधारकर एसे; कालओ सिय सपएसे सिय अपएसे, भावओ सिय सपएसे सिय अपएसे ॥ जेखेत्तओ अपएसे से दव्वओ सिय सपएसे सिय अपएसे, कालओ भयणाए, भाव ओ भयणाए, जहा खेत्तओ एवं कालओ, भावओ, ॥ जे दव्वओ सपएसे से खत्तओ सिय सपएसे सिय अपएसे, एवं कालओ भावओघि, ॥ जे खेत्तओ सपएसे से भावार्थ अप्रदेशी और अनेक गुनकालादि है वह सप्रदेशी है. जो क्षेत्रसे अपदेशी है-एक आकाशप्रदेशावगाही है वह द्रव्यसे क्वचित् सप्रदेशी व काचित् अप्रदेशी है; क्योंकि एक परमाणु भी एक आकाशप्रदेशाव ग्राही होता है और अनेक परमाणु भी एक आकाश प्रदेशावग्राही होता है. वैसे ही क्षेत्र से अप्रदेशी पुद्गलों की काल से व भाव से अमदेशी की भजना रहती है, क्यों कि एक आकाश प्रदेशावनाही पुद्गल एक समय ब अनेक समय की स्थिति वाला हो वैसे ही एक गुनकाला व अनेक गुनकाला भी होवे.. जैसे क्षेत्र का आलापक कहा वैसे ही काल व भावका जानना. जो द्रव्य से सपदेशी है वह क्षेत्र से क्वचित् एसप्रदेशी व अप्रदेशी होता है क्योंकि द्विपदेशात्मकादि स्कंध एक प्रदेश व अनेक प्रदेशावगाही हो। सकते हैं वैसे ही वे काल व भाव से भी क्वचित् सप्रदेशी व क्वचित् अप्रदेशी हैं. जो क्षेत्र से सप्रदेशी * हैं वे द्रव्य से नियमा सप्रदेशी होते हैं क्योंकि अनेक प्रदेशावग्राही अनेक पुद्गलों होते हैं. काल १.२ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी, * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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