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* प्रकाशक राजाबहादुर लार
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शब्दार्थ पुत्र अ० अनगार को ए. ऐसा व० बोले स० सब पो• पुद्गल मे० मरे मत में अ• आर्य स० अर्ध *
समझासपएसा,एवं तेएग समय ठिईएविपोग्गले सअट्ठे समझे सपएसे तंचेवाजइणं अजो भावाएसेणं सव्व पोग्गला सअड्डेइ एवं एक गुणकालएविपोग्गले सअढे समझे सपएसे तंचेव॥अहते एवं नभवंति तो ज वयसि दवाएसेणंवि सव्व पोगला सअट्ठा समझा सपएसा नोअणढा अमज्झा अपएसा एवं खेत्ताएसेणवि, कालाएसेणवि, भावाएसेणवि तण्णं मिच्छा ॥ तएणंसे नारयपुत्ते अणगारे लियंठिपुत्तं अणगारं एवं वयासी नो खलु एवं देवाणुप्पिया एयमटुं जाणामो पासामो ॥ जइणं देवाणुप्पिया नो गिला
यंति परिकहित्तए तंइच्छामिणं देवाणुप्पियाणं अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म जाणित्त-. पुद्गल भी अर्थ, मध्य व प्रदेश वाले होवे और जब भावादेशले सब पुद्गल अर्ध, मध्य व प्रदेश वाले हैं. तब एक गुन काला पुद्गल भी अर्ध, मध्य व प्रदश वाला होते. परंतु ऐमा नहीं है. इसलिये द्रव्यादेश से
क्षेत्रादेश से, कालादेश से व भावा देशसे सब पुद्गल अर्ध, मध्य व प्रदेश वाले हैं ऐसा जो तुम कहते हो क वह मिथ्या है. तब नारद पुत्र अनगार निर्ग्रन्थी पुत्र अनगार को ऐसा बोले कि अहो देवानुप्रिय ! मैं - इसका अर्थ नहीं जानता हूं. इसलिये यदि आपको कहने में किसी प्रकारका खेद न होवे तो मैं आपकी पास
१.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भावार्थ
ahi सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *