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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
* पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
अ० अर्थ सहित अ० मध्य रहित अ० प्रदेश रहित अ० आर्य ना० नारद पुत्र अनगार निः निर्ग्रन्थी अजो तंचेव ॥ तणं से नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं अणगारं एवं वयासी-दव्यादेसेणवि मे अज्जो सव्त्र पोग्गला सअड्डा समज्झा सपएसा, जो अणढ्ढा अमज्झा अपएसा, खेत्ताएसेणवि, काला एसेणवि भावासेण ॥ तएणं से नियंठिपुत्ते अणगारे नारयपुत्तं अणगारं एवं वयासी जइणं अज्जो दवाएसेणं सव्व पोग्गला सअड्डा, समज्झा, सएसा, णो अणड्डा अमज्झा, अपएसा. एवं ते परमाणु पोग्गलेवि सअड्डे समज्झे सपएसे णो अणड्ढे अमज्झे अपएसे जइणं अजो खेत्ताएसेणवि सव्ब पोग्गाला सअड्डा समज्झा सपएसा जाव एवं ते एग पएसेगाढेवि पोग्गले सअड्ढे, समज्झे, सपएसे ॥ जइणं अजो काला सेणं सव्व पोग्गला अड्ढा कि अहो आर्य ! द्रव्यादेश से, क्षेत्रा देश से, कालादेश से व भावादेश से सब पुद्गल अर्थ, मध्य व प्रदेश { सहित हैं. फार निर्ग्रन्थी पुत्र अनगारने नारद पुत्र अनगार को ऐसा कहा कि अहो आर्य ! जब द्रव्या देश से सत्र पुगल अर्थ, मध्य व प्रदेश वाले हैं तब परमाणु पुद्गल भी अर्थ, मध्य व प्रदेश वाले होवे, जब क्षेत्रा देश से सब पुद्गल अर्थ मध्य व प्रदेश वाले हैं तब एक प्रदेशावगाडी पुद्गल अर्ध, मध्य व प्रदेश } सहित होवे. जब कालादेश से सब पुद्गल अर्ध, मध्य वं प्रदेश वाले हैं तब एक समय की स्थिति वाले
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पांचवा शतक का आठवा उद्देशा
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