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शब्दार्थ
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1848 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र >>
। ते. उस का० काल ते० उस स समय में जा. यावत् प० परिषदा ५० पीछीगइ ते० उस का० काल | ते. उस स० समय में स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर के अं० शिष्य ना० नारद पुत्र ना० नामक अ० अनगार प० प्रकृति भद्रिक जा. यावत् वि. विचरते थे ॥ १ ॥ ते० उस का० काल ते. उस स० समय में स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर के अं० शिष्य नि० निग्रन्थिपुत्र अ० अनगार प० प्रकृति भद्रिक जा० यावत् वि० विचरते थे ॥ २॥ त० तब नि० निर्ग्रन्थी पुत्र अ० अनगार जे० जहां ना०
तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव परिसा पडिगया । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी णारयपुत्ते णामं अणगारे पगइभदए जाव विहरइ । ॥ १॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी। नियंठिपुत्ते णामं अणगारे पगइभदए जाव विहरइ ॥२॥ तएणं नियंठिपुत्ते सातवे उद्देशे में पुद्गलों की स्थिति का कथन किया. आठवे उद्देशे में उस का ही विस्तार पूर्वक विवेचन कहते हैं. उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे, परिषदा वंदन करने को आई 30 9 धर्मोपदेश सुनकर पांछीगइ. उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर का शिष्य प्रकृति भद्रिक
नारद पुत्र नामक अनगार संयम व तप से अत्मा को भावते हुए विचरते थे. ॥१॥ उस काल उसकी समय में श्री महावीर के शिष्य प्रकृति भद्रिक निग्रंथीपुत्र नामक अनगार संयम व तप से आत्मा को भावते है।
8 पांचवा शतकका आठवा उद्देशा8800
भावार्थ