________________
-
शब्दार्थ
७१४
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
यथा हे० हेतु जा० जानता है पा० देखता है हे• हेतु बु० समझे हे० हेतु अ• विशेष जाने हे हेतु छ०१ - छद्मस्थ मरण म० मरे शेषपूर्ववत् से० वैसे भ० भगवन् पं० पांचवा स० शतक का स० सातवा उ० उद्देशा स० समाप्त ॥५॥७॥
*
. तंजहा-हेउणा न जाणइ, जाव हेउणा अण्णाण मरणं मरइ । पंचअहेऊ पण्णत्ता, तंजहा-अहेउं जाणइ जाव अहेउं केवलिमरणं मरइ पंचअहेऊ पण्णत्ता, तंजहा. अहेउणा जाणइ जाव अहेउणा केवलि मरणं मरइ पंच अहेऊ पण्णत्ता, तंजहाअहेउं न जाणइ, जाव अहेउं छउमत्थ मरणं मरइ ॥ पंचअहेऊ पण्णत्ता, तंजहाअहेउणा नजाणइ जाव अहेउणा छउमत्थ मरणं मरइ ॥ सेवं भंते भंतत्ति ॥ पंचम सयस्स सत्तमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ५ ॥ ७॥ x
x औरभी पांच अहेतु कहे हैं अहेतु से जाने यावत् अहेतु से केवली मरण मरे. पांच अहेतु कहे हैं अहेतु जाने । नहीं यावत् छद्मस्थ मरण परे और भी पांच अहेतु कहे हैं अहेतु से जाने नहीं यावत् अहेतु से छद्मस्थ मरण
मरे. विशेषार्थ बहुश्रतवन्तगम्य. अहो भगवन् ! आप के वचन तथ्य हैं. यह पांचवा शतक का सातवा * उद्देशा पूर्ण हुआ ॥ ५ ॥ ७॥ x
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ