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शब्दार्थ *
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व० वृक्ष की पंक्ति दे० देवालय स० सभा प० पर्वत थू० स्तूभ खा० खाइ प० उपर नीचे सम आकार) { वाली खाई पा० प्राकार अ० अटारी च० चरिका दा० द्वार गो० गोपुर पा० महेल घ० गृह स० शरण (ले० स्थानक आ० दुकानों सि० श्रृंगाटक स्थान ति० तीन रस्ता मीले च० चौक च० चचर च० चतुर्म (ख म० राजमार्ग प० मार्ग स० शकट र० रथ जा० यान ज० घोंसरुं गि० अंबाडी थि० ऊंटका पलाण सी० पालखी सं० छोटी गाडी लो० तवा क० कडाई क० कुङछी भ० भवन शेष पूर्ववत् ॥ १३ ॥ ज० सगड - रह जाण - जुग्ग- गिल्लि - थिल्लि - सीय- संदमाणियाओ-परिंग्गहियाओ भवति, लोहीलोहक डाह - कडुच्छुया - परिग्गहिया भवंति भवणा परिग्गहिया भवंति, देवा - देवीओमणुस्सा- मणुस्सीओ-तिरिक्खजोणिया - तिरिक्ख जोणिणीओ-आसण-सयण खंभ- भंडसचित्ता-चित्त-मीसयाइं दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति से तेणद्वेणं ॥ १३ ॥ जहा तीन रस्ते मीले वैसा मार्ग, चौक, चच्चर, चार मुखवाला मार्ग, राज्यमार्ग, शकट, रथ, विमान, धूसरा, अंबाडी, उटका पलाण, पालखी, छोटीगाडी, तवा, छोटीकडाइ, कुडछी, भुवन, देव, देवी, मनुष्य, मनुष्यणी, तिर्यच, तिर्यचणी, आसन, शयन, स्थंभ, भंड, सचित्त, अचित्त, व मीश्र द्रव्यका परिग्रह रहा हूवा है इसीसे तिर्यच सपरिग्रही व सारंभी कहाते हैं || १३ | ऐसे ही मनुष्य का जानना ॥ १४ ॥
सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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