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शब्दार्थ गौतम ने० मारकी पु० पृथ्वी काया का सं० आरंभ करते हैं जा० यावत् त०
सूत्र
भावार्थ
२०३ अनुवादक ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
स काया का स०
आरंभ करते हैं सर शरीर परिग्रही भ० होते हैं क० कर्न प० परिग्रह वाले भ० होते हैं (स० सचित अ० अचित्त भी० मीश्र द० द्रव्य प० परिग्रहीत भ० होते हैं ते० इसलिये ॥ ९ ॥ अ० अमुरकुमार भं० भगवन् भ० भवन के प० परिग्रहवाले दे देव दे० देवियों म० मनुष्य म० अपरिग्गा ? गोयमा ! नेरइयाणं पुढविकायं समारभंति, जाव तसकार्य समारभंति, सरीरा परिग्गहिया भवति, कम्मा परिग्गहिया भवंति सचित्ताचित्तमीसयाइं दव्वाई परिग्ग हियाइं भवंति । सेतेणं तं चैव || ९ || असुरकुमाराणं भंते! कि सारंभा पुच्छा ? गोयमा ! असुरकुमारा सारंभा सपरिग्गहा नो अणारंभा अपरिग्गहा, से केणट्टेणं ? गोयमा ! असुरकुमाराणं पुढविकायं समारभंति जाव तसकायं समारभंति ॥ सरीरा परिग्गहिया भवति, कम्मा परिग्गहिया भवंति भवणा परिग्गहिया भवंति, देवा - देवीओ ( का आरंभ करते हैं. नारकी को शरीर, कर्म, सचित्त, अचित्त व मीश्र द्रव्य का परिग्रह होता है इसलिये वे सारंभी व सपरिग्रही हैं ॥ ९ ॥ अहो भगवन् ! असुरकुमार जाति के देव क्या सारंभी सपरिग्रही हैं ? अहो गौतम ! असुरकुमार सारंभी सपरिग्रही हैं क्योंकी असुरकुमार पृथ्वीकाय यावत् सकाया का आरंभ करते हैं और उन को शरीर कर्म, भवन, देव, देवियों, मनुष्य, मनुष्यणियों,
* प्रकाशक-राजात्रहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी **
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