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शब्दार्थ
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पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती)
गौतम स० सब से थो० थोडे खे० क्षेत्र स्थान का आयुष्य ओ० अवगाहना स्थान का आयुष्य अ०१ असंख्यात गुना द. द्रव्य स्थान असंख्यात गुना भा. भाव स्थान असंख्यात गुने ॥ ८॥ ने० नारका कि क्या सा० आरंभ सहित स० परिग्रह सहित उ. अथवा अ० अनारंभी अ० अपरिग्रही गा० गौतम । ने नारकी मा० सारंभी स० सपरिग्रही नो० नहीं अ० अनारंभी अ० अपरिग्रही से० अथ के • कैसे गो००७
उयस्स कयरे २ जाव विसेसाहिया ? गोयमा ! सव्वत्थोवे खेत्तट्ठाणाउए, ओगाहणट्ठाणाउए असंखेजगुणे, दव्वट्ठाणाउए असंखेज्जगुणे, भावट्ठाणाउए असंखेजगुणे ॥ खेत्तोगाहणदव्वे भावट्ठाणाउयंच अप्पबहुं-खेत्ते सव्वत्थोवे सेसाढाणा असंखेज्जगुणा ॥ ८ ॥ नेरइयाणं भंते ! किं सारंभा सपरिग्गहा, उदाहु अणारंभा अपरिग्गहा ?
गोयमा ! नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अणारंभा अपरिग्गहा ॥ सेकेण?णं जाव कौन किस से अल्प, बहुत व विशेषाधिक है ? अहो गौतम ! सब से थोडा क्षेत्र स्थान का आयुष्य, उस से अवगाहना स्थान का आयुष्य असंख्यात गुना, उस से द्रव्य स्थान का आयुष्य असंख्यात गुना और उस से भाव स्थान का आयुष्य असंख्यात गुना. ॥ ८॥ अहो भगवन् ! क्या नारकी सारंभी सपरिग्रही हैं ? अथवा अनारंभी अपरिग्रही हैं ? अहो गौतम ! नारकी सारंभी व सपरिग्रही हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से नारकी सारंभी पपरिग्रही हैं ? अहो गौतम ! नारकी पृथ्वी काया का यावत् त्रस काया है।
488 पांचवा शतकका सातवा उद्देशा 89488
भावार्थ
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