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शब्दार्थ * {शेष पूर्ववत् ॥ ७ ॥ ए० कंपने वाले द० द्रव्य स्थान का आ० आयुष्य खे० क्षेत्र स्थान आयुष्य ओ० अवगाहना स्थान आयुष्य भा० भाव स्थान आयुष्य में से क० कौन जा० यावत् वि० विशेषाधिक गो० असंखेज्जकालं असद्दपरिणयस्सणं भंते ! पोग्गलस्स अंतरं कालओ केवचिरंहोइ ? गोयमा ! जहणेणं एगं समयं उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइ भागं ॥ ७ ॥ एयस्स भंते ! दव्वट्ठाणाउयस्स, खेत्तट्ठाणांउयरस, ओगाहणट्ठाणाउयस्स, भावट्ठाणा | प्रदेशावगाही स्थिर पुद्गल तक का जानना. ऐसे ही वर्ण, गंध, रस स्पर्श व सूक्ष्म परिणत पुद्गलों का जानना. शब्द परिणत का अंतर जघन्य एक समय उत्कृष्ट असंख्यात काल का और अशब्द परिणत पुद्गलों का जघन्य एक समय उत्कृष्ट आवलिका का असंख्यात वा भाग का जानना ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! देव्य (स्थान की स्थिति, क्षेत्र स्थान की स्थिति अवगाहना स्थान की स्थिति, व भाव स्थान की स्थिति में से
सूत्र
भावाथ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋानी
१ द्रव्य सो पुद्गल द्रव्य, स्थान सो भेद और आयु सो स्थिति अर्थात् पुल परमाणु द्विप्रदेशी स्कंधादिक की स्थिति अथवा द्रव्यका उसी भव में अवस्थान रूप रहना सो द्रव्यस्थान आयुष्य.
२ क्षेत्रस्थान आयुष्य एक आकाश प्रदेश में जितने कालतक पुद्गल अवस्थित पने रहे सो क्षेत्रस्थान आयुष्य. ३ जितने आकाश प्रदेश में पुद्गल अवगाहे उतने ही पुद्गल अन्य स्थान अवगाहे इस की स्थिति सो अवगाहन स्थान आयुष्य और ४ भाव सो कालादि के भेद की स्थिति.
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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