________________
शब्दार्थ
40989- पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्त ( भगवती ) सूत्र <8883
सहित पु० पृच्छा गो• गौतम सि० क्वचित् स. अर्ध सहित अ० मध्य रहित स० प्रदेश सहित सि० क्वचित् अ० अर्ध रहित स० मध्य सहित स० प्रदेश सहित ज० जैसे सं• संख्यात प्रदेशात्मक त० तैसे अ० असंख्यात प्रदेशात्मक अ० अनंत प्रदेशात्मक ॥ ३ ॥ ५ परमाणु पो पुद्गल भ० भगवन् प० परमाणु पुद्गल फु० स्पर्श हुवे किं० क्या दे देश से दे० देश को फु० स्पर्शता है दे. देश से दे०
खंधे किं सअढे पुच्छा ? गोयमा ! सिय सअढे अमझे, सपएसे, सिय अणद्वे समझे, सपएसे, जहा संखेजपएसिओ, तहा असंखेज पएसिओवि, अणंत । पएसिओवि ॥ ३ ॥ परमाणु पोग्गलेणं भंते ! परमाणु पुग्गलं फुस-
माणे किं देसेणं देसं फुसइ, देसेणं देसे फुसइ, देसेणं सव्वंफुसइ, देसेहिं देसं वगैरह जो विषम राशि है उस का तीन प्रदेशी स्कंध जैसे जानना. अहो भगवन् ! संख्यात प्रदेशी स्कंध क्या अर्ध मध्य व प्रदेश सहित हैं ? अहो गौतम ! संख्यात प्रदेशी स्कंध क्वचित् अर्ध सहित मध्य रहित व प्रदेश सहित है और क्वचित् अर्ध रहित, मध्य सहित व प्रदेश सहित है; क्योंकि इस में सम विषम दोनों राशि होती हैं. संख्यात प्रदेशी स्कंध जैसे असंख्यात प्रदेशी स्कंध व अनंत प्रदेशी स्कंध का जानना ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल परमाणु पुद्गल का स्पर्श करते क्या १ अपने एक देश से दूसरे के एक देश को स्पर्श २ अपने एक देश से दूसरे के अनेक देशों को स्पर्श ३ अपने एक
*888 पांचवा शतकका सातवा उद्देशा 88
भावार्थ