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शब्दार्थ स्कंध घ. चार प्रदेशी स्कंध ज० जैसे च० चार प्रदेशीकंध त० से पं० पांच प्रदेशी जा• यावत् त ?
तैसे अ० अनंत प्रदेशी ॥ १ ॥ ५० परमाणु पो० पुद्गल भं०भगवन् अ० असिधारा ख० क्षुर की धारा उ.34 अवगाहे हं०हां उ० अवगाहे से. अथ त वहां छि छेदावे भि० भेदावे गोल गौतम णो नहीं इ० अ. अर्थ स० समर्थ नो नहीं त० तहां स० शस्त्र क० जावे ए. ऐसे जा० यावत् अ० असंख्यात प्रदेशात्मक अ० अनंत प्रदेश वाला भ० भगवन् खं० स्कंध अ० खड्ग की धारा खु० क्षुकी धारा को उ०
देसा एयंति, ॥ जहा चउप्पदेसिओ तहा पंचप्पदेसिओ जाव तहा अणंत पएसिओ ॥ १ ॥ परमाणु पोग्गलेणं भंते ! असिधारंवा खुरधारंवा, उग्गाहेजा ? हंता उग्गाहेजा ॥ सेणं तत्थ छिज्जेजवा भिज्जेजवा ? गोयमा ! णो इण? समढे।
नो खलु तत्थ सत्थं कमइ, एवं जाव असंखेजपएसिओ ॥ अणंत पएसिएणं भंते ! भावार्थ देश से चले व बहुत देश से चले नहीं. जैसे चार प्रदेशात्मक स्कंध का कहा वैसे ही पांच, छ, सात, आठ
नव, दश. संख्यात असंख्यात व अनंत प्रदेशात्मक स्कंध का जानना॥१॥ अहो भगवन् ! क्या परमाणुपुद्गल org
खड्ग की धारा व क्षुर ( उस्तरे ) की धारा को अगाहे अर्थात् उस को लगे? हां गौतम ! परमाण a पुद्गल खड्ग की धारा व क्षुरकी धारा नीचे आसकने हैं. अहो भगवन् ! क्या वह परमाणु पुद्गल छेदाता 1% भेदाता है ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है क्योंकि उसमें शस्त्र संक्रमण नहीं कर सकता है ।
पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 4888
48488 पांचवा सतक का सातवा उद्देशा828ko