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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
409 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
नेक ते उसी भ० भवग्रहण में सि० सीझे अ० कितनेक दो० दूसरे भ० भव में सिं० सीझे त० तीसर पु० फीर भ० भवग्रहण ना० अतिक्रमे नहीं ॥ १३ ॥ जे० जो मं० मगवन् प० अन्य को अ० असत्य अ० अद्भूत अ० अभ्याख्यान से अ० आल चढाता है त० उस को क० कैसा क० कर्म क० करते हैं। गो० गौतम जे० जो प० अन्य को अ० असत्य अ० असद्भूत अ० अभ्याख्यान से अ० आल चढाता है। त० उस को त० तैसा क० कर्म क० करते हैं ज० जहां अ० आते हैं त० वहां प० अनुभवते हैं त० भवग्गहणेणं सिज्झइ, तच्चं पुण भवग्गहणं नाइक्कमइ ॥ १३ ॥ जेणं भंते ! परं अलिएणं असणं अभक्खाणेणंअब्भक्खाइ तस्सणं कहप्पगारा कम्मा कति ? गोयमा ! जेणं परं अलिएणं असंतएणं अब्भक्खाणं अब्भक्खाइ, तस्सणं गाराचे कम्मा कति । जत्थेवणं अभिसमागच्छइ तत्थेवणं पडिसंवेदेइ तओ अहो गौतम ! कितनेक उसी भव में सीझे, कितनेक दूसरे भव में सीझे, परंतु तीसरा भव नहीं उल्लंघ { अर्थात् तीसरे भव में निश्चयही सीझते हैं ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! जो कोई अन्य महात्मा पुरुषको द्वेषबुद्धि असद्भूत, असत्य कलंक चढांव तो उन को कैसे कर्मों का बंध होवे ? अहो गौतम ! जो पुरुष जैसा कलंक अन्य को चढाता है उस को वैसे ही कर्मों का बंध होता है. और जहां वह कर्म किया होगा वहांही उदय में अवेगा और वहां ही वेदेगा. अहो भगवन् ! अपके वचन सत्य हैं. यह पांचवा शतक का छठ्ठा
तहप्प
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