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शब्दार्थ उज्वालते म० महाकर्मवाले म० महाक्रिया वाले म० महा आश्रव वाले म० महावेदना वाले भ० होवे |
अ० नीचे स० समय २ में वो विखरते हुवे वो नष्ट करते च० छेल्ले स० समय में ई० अग्निभूत मु०१० V मुर्मुरा समान छा० भस्मीभूत त• उस पीछे अ० अल्पकर्म वाले कि० क्रिया आ० आश्रव अ० अल्प ० वेदना वाले भ० होता है हं० हां गो० गौतम अ० अग्निकाय अ० तत्काल का उ० उज्वल होती तं• महाकम्मतराए चेव, महाकिरियतराए चेव, महस्सवतराए चेव, महावेयणतराएचेव भवइ । अहेणं समए २. वोक्कसिजमाणे वोच्छिज्जमाणे चरिमकालसमयसि इंगालभूए मुम्मुरभूए, छारियभूए, तओपच्छा अप्पकम्मतराएचेव किरिया आसव अप्पवेयणतरा
ए चेव भवइ ? हंता गोयमा ! अगणिकाएणं अहुणोजलिए समाणे तं चेव ॥ ९॥
अग्नि को तत्काल प्रज्वलित करे तो क्या वह बहुत कर्मवाला, महा क्रियावाला, महा आश्रववाला व महा भावार्थ
वेदनावाला होवे ? और फीर नीचे समय २ में अग्नि को विखेरदेते व बुझा देते अंगारे समान, मुर्मुरे समान, व भस्म समान जब वह आग्न होती है तब क्यावह अल्प कर्म, अल्प क्रिया, अल्प आश्रव व वेदनावाला होवे ? हां गौतम ! तुर्न अग्नि प्रबलित करनेवाला महाकर्मी यावत् महावेदनावाला होवे और अनि विखेरकर अंगारे यावत् भस्म समान करनेवाला अल्प कर्मवाला यावत् अल्प वेदनावाला होवे॥९॥ अब
488 पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ति ( भगवती ) सूत्र 488
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पांचवा शतकका छठा उद्देशा 8*884