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शब्दार्थी करते हैं सि० क्वचित् नो० नहीं क० करते हैं क० मोललेने वाले को ता० वे स० सब प० पतली होती हैं ।
॥ ६॥ गा० गाथापति भ० भगवन् भं० किरियाना वि० खरीदने वाले को जा. यावत् भं० किरियाना से उस की पास उ० लाये क० खरीदने वाले को शेष पूर्ववत् मि० मिथ्या दर्शन कि० क्रिया की भ० सिय कज्जइ, सिय नो कज्जइ कइयस्सणं ताओ सव्वाओ पयणुईभवति ॥ ६ ॥ गाहावइस्सणं भंते ! भंडं विकिणमाणस्स जाव भंडे से उवणीए सिया, कइयस्सणं भंते ! ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ, गाहावइस्सवा ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया ? गोयमा ! कइयस्स ताओ भंडाओ हेटिलाओ चत्तारि किरियाओ कजंति, मिच्छादसणकिरिया भयणाए ॥ गाहावइस्सणं तओ सव्वाओ हक को उक्त सब क्रियाओं पतली होती हैं ॥ ६॥ किरियाना बेचनेवाला गाथापति के पास से ग्राहक ने किराना खरीदा और ग्रहण भी कर लीया तब अहो भगवन् ! उस ग्राहक को क्य आरंभिकी आदि | क्रियाओं लगती हैं ? और गाशपति को भी क्या आरंभिकी आदि क्रियाओं लगती हैं अहो गौतम! उस
किराने से ग्राहक को आरंभिकी, परिग्रहिकी, मायाप्रत्ययिकी व अप्रत्याख्यान क्रियाओं लगती हैं. मिथ्या 1 दर्शन क्रिया क्वचित् लगती है व क्वचित् नहीं लगती है. और गाथापति को उक्त सा क्रियाओं पतली है।
पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 888
पंचमान विवाह
-पाचवा शतकका छठा उद्दशा