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शब्दार्थ याना सा० ग्रहण करे भ० किरियाना भी से उस को अ० नहीं आया हुआ सि. होवे गा० गाथापति.
का भं० भगवन् ता० उस भं० किरियाने से किं. क्या आ० आरंभिकी कि० क्रिया क० करता है जा. यावत् मि० मिथ्या दर्शन कि० क्रिया क० करता है क० मोललेने वाले को ता० उस भई किरियाने से आ० आरंभिकी कि० क्रिया जा० यावत मि० मिथ्या दर्शन कि० क्रिया गो० गा० गाथापति को ता. उस भै० किरियाने से आ० आरंभिकी कि० क्रिया क० करता । यावत् अ० अप्रत्याख्यान कि० क्रिया क० करते हैं मि० मिथ्या दर्शनं सि० क्वचित् क०
अणुवणीए सिया गाहावइस्सणं भंते! ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ जाव । मिच्छादसणकिरिया कज्जइ ? कइयस्सवा ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ, जाब मिच्छादसण किरिया कज्जइ ? गोयमा ! गाहावइस्स ताओ भंडाओ
आरंभिया किरिया कजइ जाव अप्पच्चक्खाण किरिया कज्जइ, मिच्छादसण किरिया भावार्थ
किरियाना दीया नहीं है, तो अहो भगवन् ! उस गाथापति को उस किरियाने से क्या आरंभिकी भी यावत् गिथ्यादर्शन क्रिया लगे? और ग्राहक को क्या उस किरियाने से आरंभिकी यावत् मिथ्यादर्शन
क्रिया लगे ? अहो गौतम ! गाथापति को उस किराने से आरंभिकी यावत् अप्रत्याख्यान प्रत्ययिकी रक्रिया लगती है और मिथ्यादर्शन क्रिया कवचित् लगती है व क्वचित् नहीं लगती है. खरीदनेवाला ग्रा
२ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी