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शब्दार्थ अ० अप्रत्याख्यान मि० मिथ्यादर्शन कि० क्रिया सि० क्वचित् क० करें सि० क्वचित् नो० नहीं क0141
करे अ० अथ से उन को भ० किरियाणा अ० प्राप्त होवे त० उस ५० पीछे स० सब ता. वे प० पतली १ होती हैं ॥५॥ गा. गृहपतिका भं० किरियाना वि० बेचने वाला का क० मोललेनेवाला भं० किरिहै दंसणवत्तिया ? गोयमा ! आरंभिया किरिया कज्जइ, परिग्गहिया, मायावत्तिया,
अप्पच्चक्खाणकिरिया कज्जइ, मिच्छादसणकिरिया सिय कन्जइ सिय नो कन्जइ ॥
अह से भंडे अभिसमण्णागए भवइ, तओसे पच्छा सव्वाओ ताओ पयणुईभवंति है ॥ ५॥ गाहावइस्सणं भंते ! भंडं विक्किण्णमाणस्स कइए भंडं साइजेजा, भंडेयसे वाला गाथापति को क्या आरंभिकी क्रिया लगती है, परिग्रहिकी क्रिया लगती है, मायाप्रत्ययिकी क्रिया लगती है, अप्रत्याख्यान प्रसयिकी क्रिया लगती है या मिथ्यादर्शनमत्ययिकी क्रिया लगती है ? अहो गौतम ! इस तरह किरियाने की गवेषणा करनेवाले गाथापति को आरंभिकी, परिग्रहिकी,
अप्रत्याख्यान प्रत्ययिकी व माया प्रत्ययिकी क्रिया लगती है; और मिथ्यादर्शन क्रिया क्वचित् लगती | व क्वचित नहीं लगती है. और जब वह किरियाना गवेषणा करते हवे प्राप्त हो जाये तो
उक्त सब क्रियाओं पतली हो जाती हैं क्योंकि गवेषणा करनेमें वह उद्यमी बना हुवा था सो उद्यम हीन हो गया ॥५॥ किरियाने का व्यापार करनेवाले की पास से ग्राहक किरियाना अंगीकार करे परंतु उसने
पण्णत्ति (भगवती)
पांचवा शतकका छटा उद्देशा
भावाथ