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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारिमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
५० करते हैं पूर्ववत् ॥ ४ ॥ गा० गाथापति का मं० भगवन् मं० किरियाना वि० विक्रय करने वाला का के० कोई ४० किरियाना अ० लेजाये त० उस भं० भगवन् मं० किरियाना की अ० गवेषणा करने वाले ( को किं० क्या आ● आरंभिकी क्रिया क०करता है प०परिग्रहिकी मा० माया प्रत्ययिकी अ० प्रत्याख्यान मि० मिथ्या दर्शन प्रत्ययिकी गो० गौतम आ० आरंभिकी कि० क्रिया प० परिग्रहिकी मा० माया प्रत्ययिकी पॅकरंति ? गोयमा ! नो पाणे अइवाएता, नो मुखं वइत्ता. तहारूवं समगंवा, माह
वा, वंदित्ता जाव पज्जुवासेत्ता, अण्णयरेणं मणुण्णेणं पीइकारएणं असणं पाणं खाइमं साइमं पडिलाभित्ता एवं खलु जीवा जाव पकरंति ॥ ४ ॥ गाहावइस्सणं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्स केइ भंडं अवहरेजा तस्सणं भंते! भंडं अणुगवेसमाणस्स किं आरंभिया किरिया कज्जइ, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अप्पच्चक्खाणीया मिच्छादीर्घायुष्य बांधते हैं ? अहो गौतम ! प्राणातिपात नहीं करने से, मृषा नहीं बोलने से, तथारूप श्रमण माहण को वंदना नमस्कार करनेसे व अन्य मनोज्ञ प्रीति उत्पन्न करनेवाले अशनादि देने से जीव शुभ दीर्घायुष्य बांधते हैं ॥ ४ ॥ शुभाशुभ कर्मों की उपार्जना क्रिया से होती है इसलिये क्रिया का अधिकार कहते हैं. अहो भगवन् ! किरियाने का व्यापार करनेवाला गाथापति के किरियाने की कोई चौरी करे. और चौरी में गया हुवा किरियाने की वह गाथापति गवेषणा करे. अब उस समय में उस गवेषणा करने
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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