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शब्दार्थ दी. दीर्घायुष्य का क० कर्म प० करते हैं ॥२॥ क० केस भ० भगवन् जी० जीव अ० अशुभ दी ।
दीर्घायुष्य का क० कर्म प० करते हैं गो० गौतम पा० प्राणियों की अ० हिंसा करने से मू. मृषा व०१० १० बोलने से त० तथारूप स० श्रमण मा० ब्राह्मण की ही० हीलना करने से नि० नीदने से खिळखिसना
करने से ग. गर्दा करने से अ० तीरस्कार करने से अ० अन्यतर अ० अमनोज्ञ अ० अप्रीति का कारन है से अ० अशन पा० पान खा. खादिम सा. स्वादिम प० देकर एक ऐसे ख. निश्चय जी. जीव जा०१७ यावत् प० करते हैं ॥ ३॥ क कैसे भ० भगवन् जी० जीव सु• शुभ दी• दीर्घ आयुष्य का क० कर्म
पडिलाभेत्ता एवं खलु जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरंति ॥ २ ॥ कहणं भंते ! जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरंति ? गोयमा ! पाणे अइवाएत्ता, मुसं वइत्ता तहारूवं समणंवा माहणंवा हीलित्ता, निंदित्ता, खिंसित्ता, गरहित्ता, अवमाण्णत्ता, अण्णयरेणं अमणुण्णेणं, अप्पीइ कारएणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभित्ता,
एवं खलु जीवा जाव पकरंति ॥ ३ ॥ कहणं भंते ! जीवा सुभ दीहाउयत्ताए कम्म भावार्थ श्रमण माहण को मासुक एषणिक अशनादिक देने से जीव दीर्घ आयुष्य बांधते हैं ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! 3gp
जीव कैसे अशुभ दीर्घायुष्य बांधते हैं ? अहो गौतम ! प्राणियों का वध करने से, मृषा बोलने से, व । ॐ तथारूप श्रमण माहण की हीलना, निंदा, खिसना, गर्दा व तिरस्कार करने से, वैसे ही अन्य अमनोज्ञ * अप्रीति कारक अशनादि देने से जीव अशुभ दीर्घायुष्य बांधते हैं ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! जीव कैसे शुभका
428 पंचमांग विवाह पण्णात्ति ( भगवती) सूत्र 398
पांचवा शतक का छठा उद्देशा